और भी हँसीं लगती हो तुम
खुली जुल्फें, मचलती आँखें,
और
उलझती बातों के संग
जब भी करीब आती हो तुम
एक आवाज होती है मुझमें
तुम्हारे आने पर
और
खनकती रहती है
तुम्हारे चले भी जाने पर
फिर एक वहीं
उदासी घेरे रहतीं है मुझमें
हर वक्त, लेकिन..
उस तस्वीर से
जब भी निकल आती हो तुम
और भी हँसीं लगती हो तुम।
नितेश वर्मा और हँसीं तुम।
खुली जुल्फें, मचलती आँखें,
और
उलझती बातों के संग
जब भी करीब आती हो तुम
एक आवाज होती है मुझमें
तुम्हारे आने पर
और
खनकती रहती है
तुम्हारे चले भी जाने पर
फिर एक वहीं
उदासी घेरे रहतीं है मुझमें
हर वक्त, लेकिन..
उस तस्वीर से
जब भी निकल आती हो तुम
और भी हँसीं लगती हो तुम।
नितेश वर्मा और हँसीं तुम।
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