जिन्दगी इन कड़वाहटों में गुजर गयीं
महज़ एक रोटी ना मिली तो मर गयीं।
फिर से कल वहीं मार खाने-पीने की
गरीबों की ये बात जुबाँ से उतर गयीं।
कोई शक्लों-सूरतों की मोहताज नहीं
प्यासी हुयीं जुबाँ तो घटा बिखर गयीं।
परिंदे सा हाल है इस मुल्क का वर्मा
शाम का बसेरा सुबह कहीं और गयीं।
नितेश वर्मा
महज़ एक रोटी ना मिली तो मर गयीं।
फिर से कल वहीं मार खाने-पीने की
गरीबों की ये बात जुबाँ से उतर गयीं।
कोई शक्लों-सूरतों की मोहताज नहीं
प्यासी हुयीं जुबाँ तो घटा बिखर गयीं।
परिंदे सा हाल है इस मुल्क का वर्मा
शाम का बसेरा सुबह कहीं और गयीं।
नितेश वर्मा
No comments:
Post a Comment