Sunday, 28 February 2016

साँसों की हर रात में होती हो तुम

साँसों की हर रात में होती हो तुम
ठहरी सी हर बात में होती हो तुम
मेरे दिल की आवाज़ सी हो मुझमें
रो दूं गर उस मात में होती हो तुम
बिन तेरे कुछ भी नहीं मैं
बिन तेरे खुद मैं नहीं मैं
बिन तेरे खाली-खाली मैं
बिन तेरे नहीं.. कुछ भी नहीं मैं।

नितेश वर्मा

हर बार मैं मकान बदल देता हूँ

हर बार मैं मकान बदल देता हूँ
एक घर की उम्मीद में
मैं कोशिशों में याद रखता हूँ
कभी खुदको तो कभी खुदा को
मैं हार जाता हूँ
तो मकसद बदल देता हूँ
जीत जाता हूँ
तो किरदार बदल देता हूँ
ये तमाम जिन्दगी
किराये के मकान में गुजारी है
जब बिगड़ जाती है मेरी
उस मालिक मकान से
मैं ढूंढ लेता हूँ फिर से.. फिर से
कोई नई-पुरानी सी इक मकान
हर बार मैं मकान बदल देता हूँ
एक घर की उम्मीद में।

नितेश वर्मा और मकान।

उसके चाहने से भी कुछ हुआ नहीं

उसके चाहने से भी कुछ हुआ नहीं
जिंदगी हारी मगर कोई जुआ नहीं।

माँगी भी तो अपने ही हक की माँगी
मैंने औरों का हक कभी छुआ नहीं।

कमरे में तन्हा रोता रहा तस्वीर मेरा
शायद मुझको ही मिली दुआ नहीं।

बेगैरत है इंसान भी हालात के आगे
वक़्त से बढके क्या कोई खुदा नहीं।

अब तो भरम सारे टूटने लगे है वर्मा
फिर क्यूं वो मुझसे हुआ जुदा नहीं।

नितेश वर्मा

Thursday, 25 February 2016

हर एक हुस्न-ए-अदा पे इतराते है वो

हर एक हुस्न-ए-अदा पे इतराते है वो
मुहब्बत कुछ इस तरह निभाते है वो।

जुल्फों को सुलझाते है फिर बांधते है
हर बार सिलसिला यही दुहराते है वो।

जिस्म-ए-सुकूँ अब मयस्सर नहीं मुझे
निगाहों से क्यूं ये कहकर जाते है वो।

मेरी बातों का उनपर ज़हर हो गया है
मेरी शक्ल ही देखके डर जाते है वो।

दरिया भी इसी आस में था मेरा वर्मा
चाँद सा मुझमें जब उतर जाते है वो।

नितेश वर्मा


यूं मेरे हाथों पर उजाला रखकर

यूं मेरे हाथों पर उजाला रखकर
हँसते रहें वो मुँह छाला रखकर।

अब इलाज का क्या फ़ायदा जब
भूखे रहें बीमार निवाला रखकर।

मैंने ही माँगी थीं रिहाई उनसे औ'
चारागर चले गये आला रखकर।

देश मर रहा है तो मर जाये वर्मा
होता है क्या दिल काला रखकर।

नितेश वर्मा

इश्क़ कभी हमने ज़ाहिर नहीं किया

इश्क़ कभी हमने ज़ाहिर नहीं किया
दिलों जाँ से चाहा बाहिर नहीं किया।

इंसानों को परखा फरिश्तों को पूजा
पर खुदको कभी माहिर नहीं किया।

वो रहमों-करम मुझपर जताता रहा
हालते-बयां कभी ताज़ीर नहीं किया।

एक उम्र गुजार के मिले है वो दोनों
दिल मिला फिर ज़ाजिर नहीं किया।

मैं मयकदे से लौटकर आया हूँ वर्मा
ज़ामों ने मुझको साहिर नहीं किया।

नितेश वर्मा

बेताबियों को सीने के अंदर दबाकर रखिये साहब

बेताबियों को सीने के अंदर दबाकर रखिये साहब
आग में जलता हुआ शहर अब अच्छा नहीं लगता।

नितेश वर्मा

Sunday, 21 February 2016

यूं तमाम उम्र उधारी में कौन जीता है

यूं तमाम उम्र उधारी में कौन जीता है
ज़हर उठाकर देखें मेरा कौन पीता है।

अपनों की महफ़िलें सजी है शहरों में
अब शहर में भी अपना कौन होता है।

दुनिया बहुत मतलबी है एक तेरे बिन
यूंही बेमतलबी रात भर कौन रोता है।

मगरूर इतने हुए हैं अब हम भी वर्मा
शक्ल मुझसा लेके मुँह कौन धोता है।

नितेश वर्मा


Saturday, 20 February 2016

अपनी निगाहों से भी शर्मां जाती है वो

अपनी निगाहों से भी शर्मां जाती है वो
निगाहें जभ्भी निगाहों से मिलाती है वो।

ख्वाहिशें आँखों के आसमां पे ठहरें है
चाँद में हर बार क्यूं नज़र आती है वो।

बड़े तन्हा हो चले थे जिन्दगी तेरे साये
अब तो घर से भी खींचके लाती है वो।

क्यूं उसकी मौजूदगी आवारगी लगे है
क्यूं तीर चाके-ज़िगर पे चलाती है वो।

बातें उसकी ही होगी जब भी ये होगी
हालें-दिल यूं ही नहीं कहलाती है वो।

तुमहीं मुकम्मल तुमहीं शहरयार वर्मा
फिर क्यूं मदहोशे जाम पिलाती है वो।

नितेश वर्मा और वो।


यूं ही एक ख्याल सा

हाय, सर! आपकी कोई गर्ल-फ्रेंड़ है?
नहीं.. नहीं है।
अरे! ऐसा क्यूं.. अच्छे दिखते है आप.. बाइ लूक एंड.. एंड बाय नेचर भी।
अच्छा। ऐसा है?
हुम्मम।
मगर, मेरा मानना है कुछ स्मार्ट लोगों की गर्ल-फ्रेंड़ नहीं होती.. वो सारी रात तन्हाई में बैठकर शायरी लिखा करते है। जिस तरह कुछ हसीन फकेल्टी आपके कालेज में लेक्चरर हैं। 😊

नितेश वर्मा

शायद ये ना मेरा होगा ना तेरा होगा

शायद ये ना मेरा होगा ना तेरा होगा
इश्क़ ब्याह नहीं जो सात फेरा होगा।

दिले आग को दरिया से बुझाते है वो
कह दो समुंदर सा प्यास मेरा होगा।

नितेश वर्मा

मैं तुझे छूकर खुशबू हो जाऊँ

मैं तुझे छूकर खुशबू हो जाऊँ
तुझ बिन तहक़ीरें-बूँ हो जाऊँ।

मैं निगाहों की प्यास थामें ढूंढूँ
दरिया का ठहरा खूँ हो जाऊँ।

किसी वीराने में मैं कैद रहूँ या
तुझसे मिलूं फिर तू हो जाऊँ।

मैं शाम का जलता एक दीया
अँधेरे में फैलूं हरसू हो जाऊँ।

तस्वीरें ये कैद में क्यूं रहे वर्मा
हालें-बयां मैं रूबरू हो जाऊँ।

नितेश वर्मा और हो जाऊँ।

Tuesday, 16 February 2016

पंद्रह से बीस दिन भी तो होने दे

पंद्रह से बीस दिन भी तो होने दे
इश्क़ थोड़ी हसीन भी तो होने दे।

तू ख़्वाबों में आना अब छोड़ भी
शाम को नमकीन भी तो होने दे।

शराबों में दो जिस्म लड़ते रहे थे
मामलात ये रंगीन भी तो होने दे।

किसे मिला है यूं बैठे-बैठे हबीब
बातें कुछ तहसीन भी तो होने दे।

कशिश भी कैसी आँखों की वर्मा
दिले-बयां ज़हीन भी तो होने दे।

नितेश वर्मा और भी तो होने दे।


तुम्हारे नखड़े मैं उठा नहीं सकता

तुम्हारे नखड़े मैं उठा नहीं सकता
ये इश्क़ भी मैं निभा नहीं सकता।

जाने कितने बरसों से प्यासा रहा
मैं ये तिश्नगी भी बता नहीं सकता।

रात आधी गुजर गयीं है ख्वाब में
आधी ये मैं अब बिता नहीं सकता।

तुम ख्यालों में भी नहीं ठहरती हो
पर तस्वीर ये मैं हटा नहीं सकता।

मुहब्बत में आवारगी होती है वर्मा
मगर मैं कुछ दिखा नहीं सकता।

नितेश वर्मा और नहीं सकता।

Sunday, 14 February 2016

ये भ्रम भी मैंने सीने में दबाएँ रक्खा था

ये भ्रम भी मैंने सीने में दबाएँ रक्खा था
दिल में इक दिल मैंने छिपाएँ रक्खा था।

प्यार मेरी किसी दिन की मोहताज नहीं
प्यार तो मैंने साँसों में बसाये रक्खा था।

जरूरत आग़ाज करती है मुहब्बत की
आँशिया हँसीं मैंने भी बनाये रक्खा था।

आज इज़हार कर दूँ मैं भी इश्क़ वर्मा
कबसे एक दिल मैंने सताएँ रक्खा था।

नितेश वर्मा और रक्खा था।


Happy Valentine Day By Nitesh Verma

आशिक़ मुहब्बत किया करते है और शायर उनके लिए शायरी लिखा करते है। आप सभी मुहब्बत करने वालों के लिए.. एक प्रेम भरा तोहफ़ा -

इश्क़ हवाओं में है
इश्क़ फ़जाओं में है
इश्क़ दुआओं में है
इश्क़ सदाओं में है
तुम हो तो इश्क़ है
हो जाये
तो कम रिस्क है
बातें भी ये इश्क़ है
बरसातें ये इश्क़ है
तुमसे ही ये इश्क़ है
तुम तक ही ये इश्क़ है
इबादत भी इश्क़ है
शहादत भी इश्क़ है
अदावत भी इश्क़ है
रूकावट भी इश्क़ है
सिर्फ इश्क़ ही इश्क़ है
जिन्दगी ये इश्क़ है
मौत भी ये इश्क़ है
इश्क़ बिन कुछ नहीं
इश्क़ ही तो इश्क़ है।
नितेश वर्मा और इश्क़ है।

‪#‎HappyValentineDay‬

Saturday, 13 February 2016

जैसे एक-ब-एक ही मिल गयी वो मुझे

जैसे एक-ब-एक ही मिल गयी वो मुझे
किसी पुराने से बुक स्टोर में
बेहिसाब किताबों के दरम्यान
एक मुश्किल सी किताब होकर
जिसको चाहता था मैं बरसों से पढ़ना
खुद के सीने से उसको बेफिक्र
एक दफा लगाकर, फिर.. कई रात सोना
कुछ उससे सुनना कुछ अपनी बता देना
हाल बेहाल जितना हो सब जता देना
मगर अब जाने क्यूं नहीं
कमबख्त! कोई आवाज़ होती है
उसके साथ चाय पीकर कुछ हुआ नहीं
उसके सवाल बेमानी से लगे
इस शहर की भीड़ में सब गुम है
मैं, वो और वो पुराना सा बुक स्टोर भी
और बातों के सिलसिलों में
बस इतना रह गया है -
उसका नज़रों का उठाकर कुछ पूछना और
मेरा बेख्याली होकर "हुम्मम!" कर देना।

नितेश वर्मा और हुम्मम।

Friday, 12 February 2016

तुम बहुत नाज़ुक हो

तुम बहुत नाज़ुक हो
और खूबसूरत भी
मैं तो बात-बात पर
शीशे तोड़ देता हूँ
कांच मेरी जिंदगी में है
मैं इसपर
किसी को बिठा नहीं सकता
मैं चला जाऊंगा
एक बार फिर कहीं दूर
हर दफा मैं कांच की
चीजें नहीं तोड़ सकता।

नितेश वर्मा

Thursday, 11 February 2016

तुमने इश्क में मुझे खुदको भूलाने ना दिया

तुमने इश्क में मुझे खुदको भूलाने ना दिया
चाहा के बस इतना कभी समझाने ना दिया।

मुहब्बत तुमसे चाँद की तरह होने लगी थीं
सितारों को आँगन में हमने आने ना दिया।

कुछ वक्त चाहते थें ख्यालों में सोचे तुम्हें
तुमनें नज़र से ही कभी दूर जानें ना दिया।

प्यार था वो भी जैसे कोई पुरानी सी ख़त
दिल ने कमबख़्त कभी आज़माने ना दिया।

ज़िंदगी से प्यार और तुझसे गिला हैं वर्मा
एक चेहरा तुमनें सीने से लगाने ना दिया।

नितेश वर्मा और ना दिया।


कैसी लग रही हूँ

यूं ही एक ख्याल सा..

देखो तो.. कैसी लग रही हूँ।
ऐसी की जैसी.. बस सीने से लगा लूं।

नितेश वर्मा

लिखना भी बंद कर दिया मैंने

लिखना भी बंद कर दिया मैंने
जबसे तुम्हें सोचना बंद कर दिया मैंने
हालात बदलीं तो मैं भी बदल गया
बात जब थोड़ी आगे बढ़ी तो
ज़ज्बाती भी होना बंद कर दिया
मैंने हिमाक़त की भी तो मामूली सी
क़ुर्बतों में फ़ासलें भी रखी तो मामूली सी
यादाश्त में आना भी बंद कर दिया मैंने
जबसे तुम्हें सोचना बंद कर दिया मैंने
जीना भी बंद कर दिया मैंने।

नितेश वर्मा

Monday, 8 February 2016

तुम होती हो

हर एक बेख्याली के पीछे
तुम होती हो
मुहब्बत से भी कुछ हसीन
तुम होती हो
तुमको कुछ मालूम भी है कहाँ के
तुम होती हो
लिखूँ जो मैं ख़त मेरी मज़्मून भी
तुम होती हो

तुम दिल की इशारों में होती हो
तुम नज़र की नजारों में होती हो
तुम बारिश हो हवाओं में होती हो
किसी सर्द रात बाहों में होती हो
तुम ठहरती हो जो लबों पर
पढ़के लगे कोई रवानी सी मुझमें
तुम होती हो

कोई गुजरती शाम सायों में
तुम होती हो
किसी बच्चे की मुस्कान में
तुम होती हो
वादियों के शीत के दरम्यान
तुम होती हो
एक मैं अदद जिस्म उसमें जान
तुम होती हो
हर एक बेख्याली के पीछे
तुम होती हो
मुहब्बत से भी कुछ हसीन
तुम होती हो।

नितेश वर्मा और तुम होती हो। 

सतही तौर पर भी लिखा जाना चाहिये

सतही तौर पर भी लिखा जाना चाहिये
मुहब्बत आपको भी आजमाना चाहिये।

कब तक ये आसमानों पर निगाहें रहे
सितारों को अब जमीं पे आना चाहिये।

ख्वाबों को संवारा है यूं नाजाने कबसे
इन ख्वाहिशातों को जला देना चाहिये।

दिल के बोझ को अब उतार भी वर्मा
जिंदगी को जिंदगी से मिलाना चाहिये।

नितेश वर्मा

कहानी को वही खत्म कर के रख दिया है मैंने

कहानी को वही खत्म कर के रख दिया है मैंने
जहाँ से कभी उन किरदारों को उठाया था मैंने।

नितेश वर्मा

Friday, 5 February 2016

यूं ही एक ख्याल सा..

आप कैसे.. आपको पता है बाइक पे बाल पतंगों की तरह उड़ने लगते है।
तो उड़ने दो ना, किसे फिक्र है.. जुल्फों से शुरु करते है, ना।
अरे! आप तो मुहब्बत की बातें करती है।
हाँ, क्यूं नहीं कर सकती क्या?
नहीं! क्यूं नहीं.. मगर आप तो मुझसे बड़ी है ना आंटी।
इतनी भी बड़ी नहीं हूँ, तुमसे 10 साल की बड़ी हूँ, बस। मगर मुझे लगता है कि मैं अभी भी अठारह की ही हूँ.. मुझ पर जैसे किसी ने ग्रहण लगा दिया है और मैं कभी अठारह से ज्यादा की हुई ही नहीं। क्या तुम्हें ये नहीं दिखता।
हुम्मम।
तो तुम मुझे ड्राइव पर ले चलोगे ना।
हुम्मम, फिर कभी।

नितेश वर्मा

मैं बीज़नेस मैन हूँ

मैं तहरीरे इज़ात करता हूँ
मैं किरदारों में रहता हूँ
हर शौहरत हर शक्ल के आडे
मैं तस्वीरें इज़ात करता हूँ
मैं कमाई करता हूँ
मैं गमों का सौदा करता हूँ
किसी बज़्म में नज़्म छिड़ जाये
तो ग़ज़ल बेच देता हूँ
मुश्किलात जब ज्यादा बढ़ जाये
तो कहानी बेच देता हूँ
मैं तुम्हारा भी गुनहगार हूँ
मैं तुम्हारी बातें बेच देता हूँ
जिस रात तेरी याद ना आये
ख्वाहिशें बेच देता हूँ
मैं बीज़नेस मैन हूँ जानम
मैं मुनाफे में यादें बेच देता हूँ
मैं बीज़नेस मैन हूँ जानम..
मैं बीज़नेस मैन हूँ।

नितेश वर्मा

Tuesday, 2 February 2016

तेरी दुनिया ने आज फिर रूलाया बहोत

तेरी दुनिया ने आज फिर रूलाया बहोत
इस कदर लगाया आग के जलाया बहोत।

सर्दियां वो जो जिस्म से उतर गयी थीं मेरे
फिर उसकी यादों ने सर्द बतलाया बहोत।

वो दुआ में होती है हर वक़्त ख़ैरियत को
इस जिस्म ने एक जां को पिघलाया बहोत।

उससे हर दर्द की इल्तिज़ा होती है वर्मा
मरहमी लबों ने मुझको सहलाया बहोत।

नितेश वर्मा ओर और बहोत।