Sunday, 14 February 2016

ये भ्रम भी मैंने सीने में दबाएँ रक्खा था

ये भ्रम भी मैंने सीने में दबाएँ रक्खा था
दिल में इक दिल मैंने छिपाएँ रक्खा था।

प्यार मेरी किसी दिन की मोहताज नहीं
प्यार तो मैंने साँसों में बसाये रक्खा था।

जरूरत आग़ाज करती है मुहब्बत की
आँशिया हँसीं मैंने भी बनाये रक्खा था।

आज इज़हार कर दूँ मैं भी इश्क़ वर्मा
कबसे एक दिल मैंने सताएँ रक्खा था।

नितेश वर्मा और रक्खा था।


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