जैसे एक-ब-एक ही मिल गयी वो मुझे
किसी पुराने से बुक स्टोर में
बेहिसाब किताबों के दरम्यान
एक मुश्किल सी किताब होकर
जिसको चाहता था मैं बरसों से पढ़ना
खुद के सीने से उसको बेफिक्र
एक दफा लगाकर, फिर.. कई रात सोना
कुछ उससे सुनना कुछ अपनी बता देना
हाल बेहाल जितना हो सब जता देना
मगर अब जाने क्यूं नहीं
कमबख्त! कोई आवाज़ होती है
उसके साथ चाय पीकर कुछ हुआ नहीं
उसके सवाल बेमानी से लगे
इस शहर की भीड़ में सब गुम है
मैं, वो और वो पुराना सा बुक स्टोर भी
और बातों के सिलसिलों में
बस इतना रह गया है -
उसका नज़रों का उठाकर कुछ पूछना और
मेरा बेख्याली होकर "हुम्मम!" कर देना।
नितेश वर्मा और हुम्मम।
किसी पुराने से बुक स्टोर में
बेहिसाब किताबों के दरम्यान
एक मुश्किल सी किताब होकर
जिसको चाहता था मैं बरसों से पढ़ना
खुद के सीने से उसको बेफिक्र
एक दफा लगाकर, फिर.. कई रात सोना
कुछ उससे सुनना कुछ अपनी बता देना
हाल बेहाल जितना हो सब जता देना
मगर अब जाने क्यूं नहीं
कमबख्त! कोई आवाज़ होती है
उसके साथ चाय पीकर कुछ हुआ नहीं
उसके सवाल बेमानी से लगे
इस शहर की भीड़ में सब गुम है
मैं, वो और वो पुराना सा बुक स्टोर भी
और बातों के सिलसिलों में
बस इतना रह गया है -
उसका नज़रों का उठाकर कुछ पूछना और
मेरा बेख्याली होकर "हुम्मम!" कर देना।
नितेश वर्मा और हुम्मम।
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