Tuesday, 2 February 2016

तेरी दुनिया ने आज फिर रूलाया बहोत

तेरी दुनिया ने आज फिर रूलाया बहोत
इस कदर लगाया आग के जलाया बहोत।

सर्दियां वो जो जिस्म से उतर गयी थीं मेरे
फिर उसकी यादों ने सर्द बतलाया बहोत।

वो दुआ में होती है हर वक़्त ख़ैरियत को
इस जिस्म ने एक जां को पिघलाया बहोत।

उससे हर दर्द की इल्तिज़ा होती है वर्मा
मरहमी लबों ने मुझको सहलाया बहोत।

नितेश वर्मा ओर और बहोत।

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