यूं तमाम उम्र उधारी में कौन जीता है
ज़हर उठाकर देखें मेरा कौन पीता है।
अपनों की महफ़िलें सजी है शहरों में
अब शहर में भी अपना कौन होता है।
दुनिया बहुत मतलबी है एक तेरे बिन
यूंही बेमतलबी रात भर कौन रोता है।
मगरूर इतने हुए हैं अब हम भी वर्मा
शक्ल मुझसा लेके मुँह कौन धोता है।
नितेश वर्मा
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