Monday, 8 February 2016

तुम होती हो

हर एक बेख्याली के पीछे
तुम होती हो
मुहब्बत से भी कुछ हसीन
तुम होती हो
तुमको कुछ मालूम भी है कहाँ के
तुम होती हो
लिखूँ जो मैं ख़त मेरी मज़्मून भी
तुम होती हो

तुम दिल की इशारों में होती हो
तुम नज़र की नजारों में होती हो
तुम बारिश हो हवाओं में होती हो
किसी सर्द रात बाहों में होती हो
तुम ठहरती हो जो लबों पर
पढ़के लगे कोई रवानी सी मुझमें
तुम होती हो

कोई गुजरती शाम सायों में
तुम होती हो
किसी बच्चे की मुस्कान में
तुम होती हो
वादियों के शीत के दरम्यान
तुम होती हो
एक मैं अदद जिस्म उसमें जान
तुम होती हो
हर एक बेख्याली के पीछे
तुम होती हो
मुहब्बत से भी कुछ हसीन
तुम होती हो।

नितेश वर्मा और तुम होती हो। 

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