इश्क़ कभी हमने ज़ाहिर नहीं किया
दिलों जाँ से चाहा बाहिर नहीं किया।
इंसानों को परखा फरिश्तों को पूजा
पर खुदको कभी माहिर नहीं किया।
वो रहमों-करम मुझपर जताता रहा
हालते-बयां कभी ताज़ीर नहीं किया।
एक उम्र गुजार के मिले है वो दोनों
दिल मिला फिर ज़ाजिर नहीं किया।
मैं मयकदे से लौटकर आया हूँ वर्मा
ज़ामों ने मुझको साहिर नहीं किया।
नितेश वर्मा
दिलों जाँ से चाहा बाहिर नहीं किया।
इंसानों को परखा फरिश्तों को पूजा
पर खुदको कभी माहिर नहीं किया।
वो रहमों-करम मुझपर जताता रहा
हालते-बयां कभी ताज़ीर नहीं किया।
एक उम्र गुजार के मिले है वो दोनों
दिल मिला फिर ज़ाजिर नहीं किया।
मैं मयकदे से लौटकर आया हूँ वर्मा
ज़ामों ने मुझको साहिर नहीं किया।
नितेश वर्मा
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