Sunday, 28 February 2016

हर बार मैं मकान बदल देता हूँ

हर बार मैं मकान बदल देता हूँ
एक घर की उम्मीद में
मैं कोशिशों में याद रखता हूँ
कभी खुदको तो कभी खुदा को
मैं हार जाता हूँ
तो मकसद बदल देता हूँ
जीत जाता हूँ
तो किरदार बदल देता हूँ
ये तमाम जिन्दगी
किराये के मकान में गुजारी है
जब बिगड़ जाती है मेरी
उस मालिक मकान से
मैं ढूंढ लेता हूँ फिर से.. फिर से
कोई नई-पुरानी सी इक मकान
हर बार मैं मकान बदल देता हूँ
एक घर की उम्मीद में।

नितेश वर्मा और मकान।

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