ख़तों का सिलसिला अब भी उससे जारी हैं
ये मुहब्बत भी लग रही मुझे एक बीमारी है।
बहोत कट-कटके अब वो भी रहने लगी हैं
दुश्मनी में भी उसकी बहुत दिमाग़दारी है।
वो इक चराग़ जलाके शह्र रोशन करती हैं
बाद में कहती है सब ख़ुदा की मेहरबानी है।
अब क्या करेंगे सियासत समझकर हम भी
जो हो रहा हैं सब वो क्या कम मग़ज़मारी है।
नितेश वर्मा
ये मुहब्बत भी लग रही मुझे एक बीमारी है।
बहोत कट-कटके अब वो भी रहने लगी हैं
दुश्मनी में भी उसकी बहुत दिमाग़दारी है।
वो इक चराग़ जलाके शह्र रोशन करती हैं
बाद में कहती है सब ख़ुदा की मेहरबानी है।
अब क्या करेंगे सियासत समझकर हम भी
जो हो रहा हैं सब वो क्या कम मग़ज़मारी है।
नितेश वर्मा
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