इतना प्यार क्यूं आता है मुझे उसपर
परेशां हूँ मैं कबसे बस यही सोचकर।
वो चाहती है कि मैं उसमें उलझा रहूँ
नहीं चाहती वो, मैं रहूँ उसे छोड़कर।
इस कदर कहना था उससे इश्क़ था
बारिश जैसे हुई थी खुलके बरसकर।
मेरा इंतख़ाब मुझे ही सताता रहा था
वो रोती रही मुझपे निगाहें ओढकर।
मैं इक रोज़ इतना जला के मर गया
फिर वो भी गुजर गई थी तड़पकर।
चंद लम्हों की ख़्वाहिशे थी वो वर्मा
वो मुझसे दूर थी मुझमें कहीं होकर।
नितेश वर्मा
परेशां हूँ मैं कबसे बस यही सोचकर।
वो चाहती है कि मैं उसमें उलझा रहूँ
नहीं चाहती वो, मैं रहूँ उसे छोड़कर।
इस कदर कहना था उससे इश्क़ था
बारिश जैसे हुई थी खुलके बरसकर।
मेरा इंतख़ाब मुझे ही सताता रहा था
वो रोती रही मुझपे निगाहें ओढकर।
मैं इक रोज़ इतना जला के मर गया
फिर वो भी गुजर गई थी तड़पकर।
चंद लम्हों की ख़्वाहिशे थी वो वर्मा
वो मुझसे दूर थी मुझमें कहीं होकर।
नितेश वर्मा
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