Wednesday, 11 May 2016

माँ

अपनी सारी जिंदगी जो लूटा दे वो माँ होती है
जिसे तुम भूल जाते हो अकसर वो माँ होती है।

रंगीन खिलौनों की जिद में जो बाले खींचते हो
उस दर्द को भूलाके जो मनाएँ वो माँ होती है।

जिसे रातों में भी बेचैनी चैन से सोने नहीं देती
तुमको गोद में ले लोरी सुनाएँ वो माँ होती है।

यूं किसी खेल में ही तुम्हारे बस गिर जाने पर
नम हो जाती हैं जिसकी आँखें वो माँ होती है।

तुमको मुसीबत में कभी आता हुआ देखकर
जो अपनी कंगन गिरवी रख दे वो माँ होती है।

जिसे तुम याद आते रहते हो हरपल हँसीं सी
नहीं भूलाएँ जाते जिससे कभी वो माँ होती है।

यूं दुआओं में जिसके तुम ही दुहराये जाते हो
जो लब तुमपे हैं बद्दुआ नहीं वो माँ होती है।

किसी ख़ास दिन का मोहताज़ नहीं प्यार वो
हर पल जो रहे खुद में ख़ास वो माँ होती है।

नितेश वर्मा और माँ।

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