Tuesday, 31 May 2016

हर रोज़ ये दिले आरज़ूएँ दबाई जा रही हैं

हर रोज़ ये दिले आरज़ूएँ दबाई जा रही हैं
इश्क़ करके भी निगाहें छिपाई जा रही हैं।

ये असली औदेदार कहीं और ही जा बैठे है
नज़्में किसी और जुबाँ से सुनाई जा रही हैं।

माना की ग़लतियों का भी हिसाब होगा ही
फिर आज क्यूं उंगलियाँ उठाई जा रही हैं।

सब रब की मर्जी से होता है सच है ये वर्मा
पता है अब हर दफ़ा क्यूं बताई जा रही हैं।

नितेश वर्मा

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