हर तरफ जलाया चराग़ और बुझा भी दिया
ऐसा किया था काम के नाम डूबा भी दिया।
किसी उम्मीद से निकले थे परदेश कभी जो
तेरी आँसूओं ने फिर मुझे घर बुला भी दिया।
उसके जाने पर शराब की लत लग गई मुझे
ज़माने ने फिर ये सब आदत छुड़ा भी दिया।
मिलके मुकम्मल हो जाता मैं भी उससे वर्मा
जिसने बारिशों में था मुझको रूला भी दिया।
नितेश वर्मा
ऐसा किया था काम के नाम डूबा भी दिया।
किसी उम्मीद से निकले थे परदेश कभी जो
तेरी आँसूओं ने फिर मुझे घर बुला भी दिया।
उसके जाने पर शराब की लत लग गई मुझे
ज़माने ने फिर ये सब आदत छुड़ा भी दिया।
मिलके मुकम्मल हो जाता मैं भी उससे वर्मा
जिसने बारिशों में था मुझको रूला भी दिया।
नितेश वर्मा
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