हौसलों ने ही बस बाँध रक्खा है मुझे
वर्ना कबसे बिखरा हुआ हूँ मैं खुदमें
किसी रोज़ किसी चाहत में लिक्खे थे
वो ख़त जो कभी पते पे ना भेजा मैंने
वो किसी उम्र सी मुझमें ठहर गईं है
मैं गुमशुदा हूँ खुद एक उम्र पे आके
ये दर्द की तहरीरे तस्वीर बन गई हैं
सुर्ख़ और ज़र्द का फर्क नहीं है मुझे
हौसलों ने ही बस बाँध रक्खा है मुझे
वर्ना कबसे बिखरा हुआ हूँ मैं खुदमें।
नितेश वर्मा
वर्ना कबसे बिखरा हुआ हूँ मैं खुदमें
किसी रोज़ किसी चाहत में लिक्खे थे
वो ख़त जो कभी पते पे ना भेजा मैंने
वो किसी उम्र सी मुझमें ठहर गईं है
मैं गुमशुदा हूँ खुद एक उम्र पे आके
ये दर्द की तहरीरे तस्वीर बन गई हैं
सुर्ख़ और ज़र्द का फर्क नहीं है मुझे
हौसलों ने ही बस बाँध रक्खा है मुझे
वर्ना कबसे बिखरा हुआ हूँ मैं खुदमें।
नितेश वर्मा
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