Monday, 23 May 2016

किसी और की परेशानी सर बांधकर घूमते रहे

किसी और की परेशानी सर बांधकर घूमते रहे
और मेरे घरवाले मुझे ही शह्र भर में ढूंढते रहे।

बस इतना सा इलाज हो जाता तो बेहतर होता
अंदर की इंसानियत लेके रात भर जागते रहे।

मुल्ज़िम कौन है औ' निज़ाम कौन है यहाँ देखो
घर का पता लेकर कस्बे-कस्बे हम भागते रहे।

मुतमईन तो बिलकुल भी नहीं मैं अपने आप से
ये क्या बनाया है तुमने मुझे जो बस दाग़ते रहे।

इक शीतलहर सी थी उसके आने भर से वर्मा 
इक वहीं नाव जिसकी पतवार हम माँगते रहे।

नितेश वर्मा

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