कोई जुल्फ हसीन जब भी शामों में छा जाती है
बारिशें मुझमें भी आकर कहीं से समा जाती है
मैं जो तड़पता रहता हूँ दिन-भर जिस प्यास में
समुंदर आखिर में आके खुद उसे बुझा जाती है
नितेश वर्मा
बारिशें मुझमें भी आकर कहीं से समा जाती है
मैं जो तड़पता रहता हूँ दिन-भर जिस प्यास में
समुंदर आखिर में आके खुद उसे बुझा जाती है
नितेश वर्मा
No comments:
Post a Comment