मेरा कोई जुर्म नहीं था
मैं बस इश्क़ में ही था।
वो ग़लती किसकी थी
हर्फ़ कौन सा सही था।
दुआ काम कहाँ आईं
मैं गुमाँ ख़ुद कहीं था।
तबीयत सुधरी कब ये
जिस्म कबसे यही था।
इश्क़ भी क्या कर गई
मैं पहले बहुत हँसीं था।
नितेश वर्मा
मैं बस इश्क़ में ही था।
वो ग़लती किसकी थी
हर्फ़ कौन सा सही था।
दुआ काम कहाँ आईं
मैं गुमाँ ख़ुद कहीं था।
तबीयत सुधरी कब ये
जिस्म कबसे यही था।
इश्क़ भी क्या कर गई
मैं पहले बहुत हँसीं था।
नितेश वर्मा
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