एक तस्वीर है जिसे सीने से लगा रक्खा है
कोई बात है जो इन लबों पे दबा रक्खा है।
कहना चाहूँ भी तो अब मैं तुमसे क्या कहूँ
एक नाम है जो मेरे नाम को बना रक्खा है।
अब कहाँ से फिर तुम वक़्त लेके आओगी
दिल में जो भी है आज सब दिखा रक्खा है।
लफ़्ज़ों की कमी थी, तो लफ़्ज़ समेट लाये
मैंने कहा ही था एक नाम लिखा रक्खा है।
नितेश वर्मा
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