ये कविता पूरी क्यूं करूँ
क्यूं अल्फ़ाज़-ए-मुहब्बत लिखूँ
क्यूं चीख़ूँ इस वीराने में
क्यूं मैं देशभक्ति के नारे गाऊँ
क्यूं कहीं कोई परचम लहराऊँ
क्यूं मैं पानी में रंग मिलाऊँ
दारू पे कोई जंग कराऊँ
हवाओं में सरगम फैलाऊँ
गीतों में जानदार ग़ज़ल लाऊँ
क्यूं मैं ये हो-हल्ला मचाऊँ
मेरी इन कविताओं से होता क्या है
ना निज़ाम बदलता है
ना ग़रीबी ही जाती है
ना प्रेमिका ही मानती है
फिर क्यूं कोई जिद मैं पूरी करूँ
ये कविता पूरी क्यूं करूँ।
नितेश वर्मा
क्यूं अल्फ़ाज़-ए-मुहब्बत लिखूँ
क्यूं चीख़ूँ इस वीराने में
क्यूं मैं देशभक्ति के नारे गाऊँ
क्यूं कहीं कोई परचम लहराऊँ
क्यूं मैं पानी में रंग मिलाऊँ
दारू पे कोई जंग कराऊँ
हवाओं में सरगम फैलाऊँ
गीतों में जानदार ग़ज़ल लाऊँ
क्यूं मैं ये हो-हल्ला मचाऊँ
मेरी इन कविताओं से होता क्या है
ना निज़ाम बदलता है
ना ग़रीबी ही जाती है
ना प्रेमिका ही मानती है
फिर क्यूं कोई जिद मैं पूरी करूँ
ये कविता पूरी क्यूं करूँ।
नितेश वर्मा
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