Tuesday, 27 January 2015

लो इक यकीं कर लो हमारा भी तुम

लो इक यकीं कर लो हमारा भी तुम
सर इक खून कर लो हमारा भी तुम

किसी और से कहाँ-तक जताएँ हम
रिश्ता कोई भी करो हमारा भी तुम

क्यूं पूछती उसकी निगाहें तो ना हैं
सवाल उससे करो ये हमारा भी तुम

इक तुम ही नहीं हो सियासती यहाँ
चाल बदलके ये करो हमारा भी तुम

नितेश वर्मा


इन आँखों से नजानें बूंदे कब-तक बरसती रही

इन आँखों से नजानें बूंदे कब-तक बरसती रही
पूछा तो कही खातिर ये तुझ-तक तरसती रही

सौ दिनों का प्यासा परिंदा यूं ही भटकता रहा
और घनी बादल उसके मरने-तक गरजती रही

क्यूं सियासत-बंदी अब दुकानों में बंद हो गयी
साँसें भी अब बातों पर आने-तक मुकरती रही

वो ख्वाबों का सपना दिखा के कब का गया हैं
और बैठी पगली दीवानी अब-तक संवरती रही

नितेश वर्मा

तुमसे ही कुछ ये ज़िन्दगी हैं

तुमसे ही कुछ ये ज़िन्दगी हैं
तुमसे ही ये रास्तें ये मंज़िले
तुमसे ही
ये जीनें की ख्वाहिश हैं
और
तुम-तक ही ठहरनें की गुजारिश
ये जुबां हैं गर बेजुबां
तो बेजुबां ही सही
दिल हैं ठहरा तुमपें
तो तुम-तक ही चाह हैं
तुमसे ही कुछ ये ज़िन्दगी हैं
तुमसे ही ये रास्तें ये मंज़िले

नितेश वर्मा

मैं तो यूं अभ्भी नाखुश उसके इरादें से हूँ

मैं तो यूं अभ्भी नाखुश उसके इरादें से हूँ
बयान मैं करता क्या के उसके इरादें से हूँ

था तो यूं नजानें मैं कितनी मुश्किलातों में
लो जो मरा मैं तो ये सब उसके इरादें से हूँ

कोई कहता हैं क्या मुझे इसकी कहाँ हैं पडी
लिखता-सुनता मैं शख्स उसके इरादें से हूँ

अब तो भरम उसके आँखों में ही कही होगा
मैं तो बेजान सब ये जान उसके इरादें से हूँ

नितेश वर्मा

ग़र रूठता हैं तो वो रूठ जायें हमें ये होश कहाँ

कोई छूटता हैं तो छूट जायें हमें कोई होश कहाँ
ग़र रूठता हैं तो वो रूठ जायें हमें ये होश कहाँ

उसे मनानें अब हम निकलें भी तो क्या निकलें
नजर झुका के हैं बैठा मेरा होना उसे होश कहाँ

ये झूठ मान वो दरहो-हरम की दीवारें हैं तकता
के किसी रोज़ ख़ुदा मिलेंगे आँखें हैं बेहोश कहाँ

उम्मीदें-कसक,बुजदिली-आवारगी क्या क्या हैं
ले जायें ये किस मोड मुझे अब कोई होश कहाँ

नितेश वर्मा


Tuesday, 20 January 2015

सफर ये तन्हा कुछ हिसाब तो रखिएं

सफर ये तन्हा कुछ हिसाब तो रखिएं
बातें बडी-बडी,कुछ किताब तो रखिएं

वो तो मिलें आएं भी हैं यूं ना-गैरत से
उनसे कहिएं,कुछ बेहिसाब तो रखिएं

इन काली रातों में अब रक्खा क्या हैं
घर आपका,कुछ आफताब तो रखिएं

मुझसे बडे बेरूख हो चलें रिश्तें उनके
उन्हे छोडियें,कुछ बकवास तो रखिएं

अब तो यकीन उन्हें ज़मानें का ही हैं
मुझे छोडियें,कुछ मेहताब तो रखिएं

नितेश वर्मा

अब जब तुम ही ना रहें तो यूं करें कोई बात क्या

अब जब तुम ही ना रहें तो यूं करें कोई बात क्या
कैसी मुलाकात, कैसी साथ, और बीती रात क्या

अब तो, यूं किसी के बाहों के घेरों में ना होगें हम
इक मुक्कमल किताब हैं, हमारी कोई जात क्या

अब तो, इन पिंज़रें में दफन साँसों के समुन्दर हैं
जंगलों में जैसे बची नहीं रही अब कोई पात क्या

ता-उम्र जिसनें खुद को लूटा दिया हों यूं सरेआम
पूछतें हो आकर, तुम्हारी ही हुई थीं वो मात क्या

वो अभ्भी बेजुबां हैं, यकीं करों उसके आँखों पे तो
होती ग़र खुली जुबां तो सहता तुम्हारी लात क्या

नितेश वर्मा

ये कैसा ख्याल हैं

ये कैसा ख्याल हैं
जो करता हर-पल
मुझसे इक सवाल हैं

चेहरा जो आँखों पे ठहरा हैं
बेदर्द ये दर्द
उफ्फ!
बस यहीं इक मलाल हैं
तू पूछ ना मुझसे
बिन तेरे
मेरा क्या हाल हैं
ये कैसा ख्याल हैं.. ये कैसा ख्याल हैं..

नितेश वर्मा

कहीं तो उसकी इक इंतजार हैं अरसे से इस दिल में

कहीं तो उसकी इक इंतजार हैं अरसे से इस दिल में
यूं हीं करता नहीं कोई आवाज अरसे से इस दिल में

वो शाम से शहर की आवाज तक में हैं बसी अब तो
यूं हीं, ये चोर करता नहीं शोर अरसे से इस दिल में

मुहब्बत में तो इक लाख पाक इम्तिहां दे दी हैं मैंनें
घुट-घुट के अभ्भी वो जी रहा हैं अरसे से इस दिल में

मुझसे और नजानें कितनी बातों का जिक्र बाकी हैं
वो नजरें झुका के यूहीं बैठी हैं अरसे से इस दिल में

नितेश वर्मा
और
अरसे से इस दिल में


अब तो मुश्किल सा हैं

अब तो मुश्किल सा हैं
कुछ करना यहाँ
जीना यहाँ मरना यहाँ

उसके निगाहों में डूबना
उसके लबों पे ठहरना
कुछ कहना क्या
कुछ समझना क्या

ना ज़िन्दगी ही
मंज़िल से मिली
ना मौत ही मंज़िल पे
यूं संभलना
और यूं ही गिरना क्या

बदहाश सी शक्ल लियें
इक ज़िंदा
शायद हैं लाश
अब उसे मुर्दा कहना क्या

अब तो मुश्किल सा हैं
कुछ करना यहाँ
जीना यहाँ मरना यहाँ

हार के मुक्कदर के आगें
कभी बैठा नहीं
जब-तक लहू रहा
पसीना गिरता रहा

ना-समझ सब ये समझ के
मुकर के उनका
निकलना क्या

शर्म आँखों में हैं बचा
अब सब कुछ
जुबां से कहना क्या
खुद की नज़र में
गिरना-संभलना-उठना भी क्या

अब तो मुश्किल सा हैं
कुछ करना यहाँ
जीना यहाँ मरना यहाँ

नितेश वर्मा
और मुश्किल

Sunday, 11 January 2015

मुहब्बत यूं तो सवालों में नज़र नहीं आती

मुहब्बत यूं तो सवालों में नज़र नहीं आती
ग़र वो यूं परेशां हैं,तो भी नज़र नहीं आती

बिताएं थें जो कल रात, लम्हें उनके साथ
आँखें अब हजार,नाराज़ नज़र नहीं आती

नितेश वर्मा

यूं हीं करता नहीं कोई आवाज अरसे से इस दिल में

कहीं तो उसकी इक इंतजार हैं अरसे से इस दिल में
यूं हीं करता नहीं कोई आवाज अरसे से इस दिल में

वो शाम से शहर की आवाज तक में हैं बसी अब तो
यूं हीं, ये चोर करता नहीं शोर अरसे से इस दिल में

मुहब्बत में तो इक लाख पाक इम्तिहां दे दी हैं मैंनें
घुट-घुट के अभ्भी वो जी रहा हैं अरसे से इस दिल में

मुझसे और नजानें कितनी बातों का जिक्र बाकी हैं
वो नजरें झुका के यूहीं बैठी हैं अरसे से इस दिल में

नितेश वर्मा
और
अरसे से इस दिल में

Tuesday, 6 January 2015

रूठना-मनाना यहाँ कहाँ हैं लोग ही बडे हैं

किसी एक को पानें की कोशिश तो एक छूट सा जाता हैं.. किसी एक की तलब में दूसरा रूठ सा जाता हैं.. किसे स्वीकार करें.. खुद को.. या किसी के खुशियों को।

बहोत मुश्किल और उल्झा हुआ सा दिखता हैं यह सब। इंसान को एक बार में एक ही खुशी मिलती हैं.. एक चीज़ पर होना.. एक चीज़ की ही खुशी देती हैं। बहोतों पे ध्यान रखना पद-भ्रमित करती हैं। यदि आप किसी विषय से जुडे हो और कोई दूसरा.. जो आपके करीब हो.. आपकों बस यह समझ करके के आप अब उसके नहीं रहें.. आपसे नाराज़ हो जाएं या आपसे रिश्ता तोड ले तो कुसूर समझ नहीं आता।

कुछ बातें समझ से परें होती हैं, यह मनुष्य की प्रकृति हैं.. वर्ना मनुष्य भी भगवान होतें। ज़िन्दगी जहाँ बहोत कुछ सीखाती हैं.. तो वहीं यहीं ज़िन्दगी तकलीफ भी बहोत देती हैं। खुद को संवारें या किसी के खुशियों को। ग़र मेरी मानें तो बात यहीं तक हैं.. ग़र कोई आपसे अकारण नाराज़ होता हैं तो उसका पीछा करना छोड दे.. ग़र वो कुछ कहना नहीं चाहता तो उसे उसकी दिशा में जानें दे, क्यूंकि जो छोटी-छोटी बातों पे रूसवां हो जाएं तो उसे बाद में मनाना बहोत मुश्किल हो जाता हैं।

अब तो इन राहों पर सारें रूसवां ही खडे हैं
रूठना-मनाना यहाँ कहाँ हैं लोग ही बडे हैं

नितेश वर्मा

टूट चुका हूँ मैं मगर दिल अभ्भी वही हैं

वो तो बस मेरी मुहब्बत ही बनके रही हैं
शायद हो! ये कही शायद तक ही सही हैं

मुझसे मिलनें की भी चाह उन्हें कहीं हैं
दिख रही है, उन आँखों की नमीं यही हैं

यूं ही बेपरवाह वो कहीं तो बिखर रहीं हैं
ये बयां करने को, अब मेरी जुबां नहीं हैं

तोड दिए हैं मैनें सारें रिश्तें उन यादों से
टूट चुका हूँ मैं मगर दिल अभ्भी वही हैं

नितेश वर्मा


Sunday, 4 January 2015

मैं खामोश चला जाता हूँ जब वो मुझे बुला लेती हैं

कई बार परदें से इशारा करके वो मुझे बुला लेती हैं
मैं खामोश चला जाता हूँ जब वो मुझे बुला लेती हैं

मैं मुहब्बत-सा ही हूँ शायद अब वो समझ गयी हैं
जुबां से इंकार और आँखों से वो मुझे बुला लेती हैं

कितनी बेजान सी हैं ज़िंदगी बिन उसके अब तो
माँगता हूँ मौत तो सजदे में वो मुझे बुला लेती हैं

सब कहतें हैं मैं बस उसके ख्यालों से ही ज़िंदा हूँ
वर्ना मौसम आती नही और वो मुझे बुला लेती हैं

नितेश वर्मा
और
वो मुझे बुला लेती हैं


ये तो धुएं भी तस्वीर, मगर उसकी करती हैं

मुझसे सवालें कितनी नज़र उसकी करती हैं
बातें जाने दिल क्यूं हर पहर उसकी करती हैं

वो आहिस्तें से आई थी कभी ज़िंदगी में मेरे
अभ्भी बरसात क्यूं ये खबर उसकी करती हैं

वो ना-जानें मेरें ख्यालों से भी कितनी दूर हैं
और न जानें कैसे बातें शहर उसकी करती हैं

उसके यादों को मिटानें के खातिर जला दी हैं
ये तो धुएं भी तस्वीर, मगर उसकी करती हैं

नितेश वर्मा


Thursday, 1 January 2015

मोहब्बत नहीं, तो छोडियें ग़म की बात ना कीजिएं

मिलिये मुझसे, तो यूं बिछडनें की बात ना कीजिएं
मोहब्बत नहीं, तो छोडियें ग़म की बात ना कीजिएं

ना-जानें, मुझसे किस कदर रूसवां हैं निगाहें उनकी
नहीं समझे, तो अब छोडिये उनकी बात ना कीजिएं

यूं छोड आयी हैं, वो दिल अपना इक चोर-बाजारी में
और कहती हैं, छोडिये इमांदारी की बात ना कीजिएं

सही मायनें में यही बात नहीं समझ आई मुझे वर्मा!
क्यूं कहतें हैं लोग छोडिये मुझसे की बात ना कीजिएं

नितेश वर्मा


#HNY2015

आप सभी पाठक-गणों को नए वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ। यह नया वर्ष आपके जीवन में खुशियाँ एवं समृद्धि लेकर आएं, हम यहीं कामना करतें हैं। आप सभी का हमसे जुडनें और सहयोग प्रदान करनें के लिए धन्यवाद।
आप सभी का नया वर्ष मंगलमय हो। #HNY2015

नितेश वर्मा


इस गली से यूं गुजरते जानें दिन कितना हो गया

तुझसे मिलते-बिछ्डते जानें दिन कितना हो गया
इस गली से यूं गुजरते जानें दिन कितना हो गया

मुहब्ब्तो के सिवा मैनें कभी कुछ लिक्खा ही नहीं
नफ़रत को दबाएं मुझे जानें दिन कितना हो गया

फ़ितरत उसकी रही और ज़ुर्म सारें मुझसे हो गये
यूं अंधेरें में जीते मुझे जानें दिन कितना हो गया

तुमसे अब और कुछ नहीं माँगता हूँ मैं,अए खुदा
तेरे सज़दे में बैठे मुझे जानें दिन कितना हो गया

नितेश वर्मा


यूं बे-इन्तिहा मुहब्बत तुझसे

यूं बे-इन्तिहा मुहब्बत तुझसे
और
ये खामोश-खामोश सी जुबां..

तू मुझसे कभी मिलती नहीं
और नज़र
ये तुझसे कभी हटती नहीं..

क्या हैं क्यूं हैं और कब-तक
ये मुहब्बत
मेरी आखिर होती क्यूं नहीं..

यूं बे-इन्तिहा मुहब्बत तुझसे
और
ये खामोश-खामोश सी जुबां..

नितेश वर्मा

बस इसमें फर्क इतना सा हैं

वो मुझसे प्यार करती हैं.. ..और मैं उससे.. ..बस इसमें फर्क इतना सा हैं.. ..वो दिल से दिल तक करती हैं.. ..और मैं ज़िस्म से ज़िस्म तक.. ..भूख से भूख तक..

कोई बातें महज जुबां तक आएं और कोई समझ ना पाएं तो उन शब्दों का कोई मतलब नहीं होता। ग़र खुद की निंदा से कोई सीख या समझ निकलती हो तो उसे स्वीकार करना चाहिएँ। इससे मनुष्य शांत और सुखद रहता हैं, कलेश क्षणिक मात्र भी नहीं होता हैं।

नितेश वर्मा और वो

कितनी परेशां सी हैं रात इस कमरें में

इक खामोशी सी हैं इस कमरें में
बेजान सी बेआवाज हैं इस कमरें में
कोई सुनता नहीं शायद मीनारों की
कितनी परेशां सी हैं रात इस कमरें में

यूं ही बे-धडक चली आती हैं हवाएँ
जैसे सर्द रात आग हैं इस कमरें में
डूब चुका हैं ख्याल उसका आँखों में
सौंध सी बची हैं वो बस इस कमरें में

नितेश वर्मा
और
इस कमरें में

इक ख्याल सा हैं चेहरा तेरा

इक ख्याल सा हैं चेहरा तेरा
शायद यूं ही
इक आवाज हैं चेहरा तेरा
मेरे लबों की
इक जुबां हैं चेहरा तेरा
ग़ुमशुदा सा हैं.. ग़मजदा सा हैं
इक चेहरा तेरा
हर लम्हा इक ख्वाहिश हैं
हर रात इक राज हैं
हर राह इक नजर हैं
हर साँस इक ज़िन्दगी हैं
मेरे जिन्दगी में हैं
सिर्फ़ इक चेहरा तेरा
इक ख्याल सा हैं चेहरा तेरा
शायद यूं ही
इक आवाज हैं चेहरा तेरा

नितेश वर्मा

ग़र यूं ही जल रही हैं चराग़ तो हम क्या करें

अब इन बुझी-सी ख्वाहिशों का हम क्या करें
ग़र यूं ही जल रही हैं चराग़ तो हम क्या करें

ये भोर करती शोर तो हवाओं का भी बेरूख हैं
मिजाज ही हैं ऐसा तो यूहीं बात हम क्या करें

पहल कदम से घर तक,अब दिल में हो गयी
जब मर्जी ही उसकी तो नाराज हम क्या करें

टूट चुका हैं ग़ज़ल से रिश्ता मेरा पुराना वर्मा
ज़िंदगी हो परेशा तो काफियें का हम क्या करें

नितेश वर्मा


यूं, महज बुराई ही बुराई हैं इस जमानें में

यूं, महज बुराई ही बुराई हैं इस जमानें में
अब क्या यकीं करें किसी के अफसानें में

नसीबें तोडती थी, बंदिशें कभी लोगों की
अब तो लगे रहते हैं लोग यूं आजमानें में

कुसूर उसनें बताया था की मैं गलत रहा
तमाम उम्र गुजार दी उसनें ये बतानें में

मैं तो मुहब्बत के बहानों से बहोत दूर था
ना-जानें क्यूं ना समझी मेरे समझानें में

नितेश वर्मा


उस नजर की कोई ख्वाहिशें मिटती नहीं

उस नजर की कोई ख्वाहिशें मिटती नहीं
सवालें इतनी हैं की नुमाईशें मिटती नहीं

वो घर के अंदर भी गुम-सुम सी बैठी हैं
चेहरें पे सौ पहरें और बंदिशें मिटती नहीं

यूं तो बस अब उसका ख्याल ही काफी हैं
कहानियाँ हैं इतनी के रंजिशें मिटती नहीं

उसकी दर्दों का तो अब कोई मरहम नहीं
देखी हैं करके यूं ये गुजारिशें मिटती नहीं

नितेश वर्मा


कोई कहता हैं कुछ हिसाब अभ्भी हैं

महज दो पल और 100 से भी ज्यादा बच्चें मारें गए, कुसूर शायद वो बच्चें थें। आर्मी स्कूल पेशावर, पाकिस्तान, बच्चों को सुबह लाईन में खडा करके उनकें आँखों और चेहरें पे गोली मार दी गई। कहा जा रहा यह हमला तालिबान के एक संगठन तहरीक ए तालिबान ने करवाया था। इस ऑपरेशन में जिहादियों के परिवारों पर हमले होते हैं, उनके बच्चों को मारा जाता है। तालिबान ने कहा, 'हमने स्कूल को निशाना बनाया क्योंकि सेना हमारे परिवारों को निशाना बनाती है। हम चाहते हैं कि वे हमारा दर्द महसूस करें।'

[ कुछ बयान जो इस हमलें के बाद सामनें आएं: नव-भारत टाईम्स

मैं बड़ा होकर सभी आंतकवादियों को मार दूंगा। उन्होंने मेरे भाई को मार डाला। मैं उन्हें बख्शूंगा नहीं, एक-एक को मार डालूंगा। - एक घायल बच्चा

जो बच्चे अब तक रो और चिल्ला रहे थे, मैंने देखा कि वे एक-एक कर गिरने लगे। मैं भी गिर गया। मुझे बाद में पता चला कि मुझे गोली लगी है - एक घायल बच्चा

मेरा बेटा सुबह यूनिफॉर्म में था, अब ताबूत में है। मेरा बेटा मेरा ख्वाब था। मेरा ख्वाब मारा गया। - ताहिर अली, मारे गए बच्चे के पिता ]

इस हमले की एक वजह पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई को मिला नोबेल पुरस्कार भी मानी जा रही है। पाकिस्तान के जानेमाने पत्रकार हामिद मीर ने एक भारतीय न्यूज चैनल से बातचीत में कहा कि मलाला को जब नोबेल प्राइज मिला, तब तालिबान ने ऐसा हमला करने की धमकी दी थी, इसलिए संभव है कि स्कूल को निशाना बनाकर शिक्षा का विरोध करने का संकेत दिया जा रहा हो।

वजह चाहें जो भी हो गर किसी देश को किसी दूसरें देश से बदला लेना हैं तो सीमा पे बैठें उन सैनिकों से लें, जो उनके मेहमान-नवाजी के लिए हमेशा तैयार रहतें हैं। बच्चों से, महिलाओं से या किसी बुजुर्ग से किस बात का बदला? उन्हें मार के कौन सा सियासत उनके हाथ आ जाऐगा। किसी देश के लिए इससे तुक्ष्य बात और क्या हो सकती हैं वो अपनें बदलें स्कूल के बच्चों से ले रहें हैं। वो बच्चें जो कल के भविष्य हैं, आज के रौशन हैं, उम्मीदें हैं। मैं खुद शर्मिंदा हूँ जो आज मैं यह दिन देख रहा हूँ। सियासी ना जानें कहाँ तक कौम को ले जाऐगी। वक्त और ना-जानें क्या-क्या दिखाऐगा। हम उन बच्चों और उनके परिवार वालों के लिए कामना करतें हैं भगवान उनकी आत्मा को शांति दे।

यूं तो बदलें की बची आग अभ्भी हैं
सीनें में उसके ये खंज़र तो अभ्भी हैं

कोई कहता हैं कुछ हिसाब अभ्भी हैं
तभी तो शहर में लगी आग अभ्भी हैं

नितेश वर्मा



मिलती जो खबर उसकी तो बेखबर ना होतें हम

मिलती जो खबर उसकी तो बेखबर ना होतें हम
साथ गर वो होती मेरी तो यूं बेसबर ना होतें हम

बारिशों में यूं ही वो चली आई थीं भींगतें भींगतें
मौसमों का होता हिसाब तो बेकबर ना होतें हम

कितनी आरज़ूओं को दबाएँ बैठा हैं ये दिल मेरा
होती जो उसकी रात तो यूं दरबदर ना होतें हम

उनकी दुआओं का ख्याल हैं ये उम्मीदें मेरी तो
वर्ना यूं इस असर के तो वो बेअसर ना होतें हम

नितेश वर्मा


यूं तो ये उम्मीदें बेकरार अभ्भी हैं

यूं तो ये उम्मीदें बेकरार अभ्भी हैं
मुझमें तो बची इक जान अभ्भी हैं

पता पूछतें हो तुम उस शायर का
लगता हैं बचा कुछ शे'र अभ्भी हैं

यूं मुहब्बतों का शोर हैं वीरानों में
शायद बचा यूं कुछ राज़ अभ्भी हैं

मेरी नजर से ना देखों तुम ऐ वर्मा
तुममें तो बची कुछ बात अभ्भी हैं

नितेश वर्मा


मुहब्बत भरी इक जज्बात कहनें आया हैं

यूं वो मुझसे अब इक बात कहनें आया हैं
मुहब्बत भरी इक जज्बात कहनें आया हैं

सुना था उसके बारें में ना-जानें क्या क्या
वो मुझे आज ये ज़िंदा रात कहनें आया हैं

इन ठंडी-थमी हवाओं का असर हैं शायद
वर्ना कौन अब ये बरसात कहनें आया हैं

कितनी तकलीफ से वो आया हैं मुझतक
ख्वाबों में आज वो हयात कहनें आया हैं

नितेश वर्मा

लो हार गया मैं आके आगे फिर से,उसकी ज़िद से

फिर से वही इक नाकाम कोशिश, उसकी ज़िद से
लो हार गया मैं आके आगे फिर से,उसकी ज़िद से

बता रही थीं वो भरी महफिल में यूं मुहब्बत मुझे
हो गया मैं रौशन बिखर के तन्हा, उसकी ज़िद से

बेखबर वो इस खबर से,ज़िंदा हैं इक लाश कब्र पे
क्यूं हो जाता हूँ मैं बेबस अक्सर, उसकी ज़िद से

नितेश वर्मा


उसके ना होने से, ये दिल मेरा टूटा हैं

क्यूं मुझसे मेरा इक ये हिस्सा छूटा हैं
उसके ना होने से, ये दिल मेरा टूटा हैं

कसमें,वादें,इरादें सब उसकी शर्तों से
जानें क्यूं अभ्भी वो मुझसे यूं रूठा हैं

अब तो माँगकर ही रहता हैं ज़िंदा वो
किस कदर वो इक शख्स मेरा लूटा हैं

इक इमान के खातिर जो परेशां रहा
क्यूं कहतें रहें लोग शख्स वो झूठा हैं

नितेश वर्मा


बहोत तकलीफ होती हैं जब हार अपनी होती हैं..

बहोत तकलीफ होती हैं जब हार अपनी होती हैं..

नितेश वर्मा

बिछडतें वो ख्वाब सारें एक धुएं के पीछें हैं

बिछडतें वो ख्वाब सारें एक धुएं के पीछें हैं
नजर जाती नहीं नजर एक धुएं के पीछें हैं

मिलता नहीं हैं सुकून बिन उसके कहीं तो
ज़िन्दा वो लाश, मगर एक धुएं के पीछें हैं

यूं फेरती निगाहें,वो जुल्फें संवारती रहीं हैं
सवालें करती अखबार एक धुएं के पीछें हैं

सबर से इम्तिहान,कबर पे मातम देखा हैं
उस आँखों से की बौछर एक धुएं के पीछें हैं

नितेश वर्मा


इक जुर्म हैं मुझपर

इक ज़ुर्म हैं मुझपर
सर इक खून हैं मुझपर
रीति-रिवाजों से परें
इन सामाजों से परें
हुई थीं इक भूल
इस भूल से
के वो इक जान हैं मुझपर
मेरी बाहों की
मेरी रातों की
चैंन से बेचैंन होती
मेरें दिल से लगी खंज़र
वो इक हथियार हैं मुझपर
इक जुर्म हैं मुझपर
सर इक खून हैं मुझपर

बहोत दिनों तक
यूं ही चलती रहीं
जैसे कोई भारी
किताब हो मुझपर
सयानें लफ़्ज़,दोषी जुबाँ
मरते रहें यूं ही
जैसे हो सजदें में कोई दुआ
हार के इक शमां हैं बाँधी
जैसे ये ज़िन्दगी हैं
इक उधार मुझपर
इक जुर्म हैं मुझपर
सर इक खून हैं मुझपर

नितेश वर्मा

वो बाहों में किसी और के हैं, बात क्या करें

रात ये उल्फत की हैं इंतज़ार अब क्या करें
वो बाहों में किसी और के हैं, बात क्या करें

समझातें रहें थें लबों की नर्मी से जिसे हम
जिद उनकी पागल करनें की हैं तो क्या करें

नितेश वर्मा

मैं साँसें उनके मुलाकात में लिये बैठा हूँ

इक खामोशी में, इक बात लिये बैठा हूँ
इस दिल पे मैं इक किताब लिये बैठा हूँ

वो कितना पूछतें हैं मुझसे ये पता मेरा
मैं साँसें उनके मुलाकात में लिये बैठा हूँ

नितेश वर्मा