Tuesday, 20 January 2015

अब तो मुश्किल सा हैं

अब तो मुश्किल सा हैं
कुछ करना यहाँ
जीना यहाँ मरना यहाँ

उसके निगाहों में डूबना
उसके लबों पे ठहरना
कुछ कहना क्या
कुछ समझना क्या

ना ज़िन्दगी ही
मंज़िल से मिली
ना मौत ही मंज़िल पे
यूं संभलना
और यूं ही गिरना क्या

बदहाश सी शक्ल लियें
इक ज़िंदा
शायद हैं लाश
अब उसे मुर्दा कहना क्या

अब तो मुश्किल सा हैं
कुछ करना यहाँ
जीना यहाँ मरना यहाँ

हार के मुक्कदर के आगें
कभी बैठा नहीं
जब-तक लहू रहा
पसीना गिरता रहा

ना-समझ सब ये समझ के
मुकर के उनका
निकलना क्या

शर्म आँखों में हैं बचा
अब सब कुछ
जुबां से कहना क्या
खुद की नज़र में
गिरना-संभलना-उठना भी क्या

अब तो मुश्किल सा हैं
कुछ करना यहाँ
जीना यहाँ मरना यहाँ

नितेश वर्मा
और मुश्किल

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