अब तो मुश्किल सा हैं
कुछ करना यहाँ
जीना यहाँ मरना यहाँ
उसके निगाहों में डूबना
उसके लबों पे ठहरना
कुछ कहना क्या
कुछ समझना क्या
ना ज़िन्दगी ही
मंज़िल से मिली
ना मौत ही मंज़िल पे
यूं संभलना
और यूं ही गिरना क्या
बदहाश सी शक्ल लियें
इक ज़िंदा
शायद हैं लाश
अब उसे मुर्दा कहना क्या
अब तो मुश्किल सा हैं
कुछ करना यहाँ
जीना यहाँ मरना यहाँ
हार के मुक्कदर के आगें
कभी बैठा नहीं
जब-तक लहू रहा
पसीना गिरता रहा
ना-समझ सब ये समझ के
मुकर के उनका
निकलना क्या
शर्म आँखों में हैं बचा
अब सब कुछ
जुबां से कहना क्या
खुद की नज़र में
गिरना-संभलना-उठना भी क्या
अब तो मुश्किल सा हैं
कुछ करना यहाँ
जीना यहाँ मरना यहाँ
नितेश वर्मा
और मुश्किल
कुछ करना यहाँ
जीना यहाँ मरना यहाँ
उसके निगाहों में डूबना
उसके लबों पे ठहरना
कुछ कहना क्या
कुछ समझना क्या
ना ज़िन्दगी ही
मंज़िल से मिली
ना मौत ही मंज़िल पे
यूं संभलना
और यूं ही गिरना क्या
बदहाश सी शक्ल लियें
इक ज़िंदा
शायद हैं लाश
अब उसे मुर्दा कहना क्या
अब तो मुश्किल सा हैं
कुछ करना यहाँ
जीना यहाँ मरना यहाँ
हार के मुक्कदर के आगें
कभी बैठा नहीं
जब-तक लहू रहा
पसीना गिरता रहा
ना-समझ सब ये समझ के
मुकर के उनका
निकलना क्या
शर्म आँखों में हैं बचा
अब सब कुछ
जुबां से कहना क्या
खुद की नज़र में
गिरना-संभलना-उठना भी क्या
अब तो मुश्किल सा हैं
कुछ करना यहाँ
जीना यहाँ मरना यहाँ
नितेश वर्मा
और मुश्किल
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