इक ज़ुर्म हैं मुझपर
सर इक खून हैं मुझपर
रीति-रिवाजों से परें
इन सामाजों से परें
हुई थीं इक भूल
इस भूल से
के वो इक जान हैं मुझपर
मेरी बाहों की
मेरी रातों की
चैंन से बेचैंन होती
मेरें दिल से लगी खंज़र
वो इक हथियार हैं मुझपर
इक जुर्म हैं मुझपर
सर इक खून हैं मुझपर
बहोत दिनों तक
यूं ही चलती रहीं
जैसे कोई भारी
किताब हो मुझपर
सयानें लफ़्ज़,दोषी जुबाँ
मरते रहें यूं ही
जैसे हो सजदें में कोई दुआ
हार के इक शमां हैं बाँधी
जैसे ये ज़िन्दगी हैं
इक उधार मुझपर
इक जुर्म हैं मुझपर
सर इक खून हैं मुझपर
नितेश वर्मा
सर इक खून हैं मुझपर
रीति-रिवाजों से परें
इन सामाजों से परें
हुई थीं इक भूल
इस भूल से
के वो इक जान हैं मुझपर
मेरी बाहों की
मेरी रातों की
चैंन से बेचैंन होती
मेरें दिल से लगी खंज़र
वो इक हथियार हैं मुझपर
इक जुर्म हैं मुझपर
सर इक खून हैं मुझपर
बहोत दिनों तक
यूं ही चलती रहीं
जैसे कोई भारी
किताब हो मुझपर
सयानें लफ़्ज़,दोषी जुबाँ
मरते रहें यूं ही
जैसे हो सजदें में कोई दुआ
हार के इक शमां हैं बाँधी
जैसे ये ज़िन्दगी हैं
इक उधार मुझपर
इक जुर्म हैं मुझपर
सर इक खून हैं मुझपर
नितेश वर्मा
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