Tuesday, 20 January 2015

अब जब तुम ही ना रहें तो यूं करें कोई बात क्या

अब जब तुम ही ना रहें तो यूं करें कोई बात क्या
कैसी मुलाकात, कैसी साथ, और बीती रात क्या

अब तो, यूं किसी के बाहों के घेरों में ना होगें हम
इक मुक्कमल किताब हैं, हमारी कोई जात क्या

अब तो, इन पिंज़रें में दफन साँसों के समुन्दर हैं
जंगलों में जैसे बची नहीं रही अब कोई पात क्या

ता-उम्र जिसनें खुद को लूटा दिया हों यूं सरेआम
पूछतें हो आकर, तुम्हारी ही हुई थीं वो मात क्या

वो अभ्भी बेजुबां हैं, यकीं करों उसके आँखों पे तो
होती ग़र खुली जुबां तो सहता तुम्हारी लात क्या

नितेश वर्मा

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