कोई छूटता हैं तो छूट जायें हमें कोई होश कहाँ
ग़र रूठता हैं तो वो रूठ जायें हमें ये होश कहाँ
उसे मनानें अब हम निकलें भी तो क्या निकलें
नजर झुका के हैं बैठा मेरा होना उसे होश कहाँ
ये झूठ मान वो दरहो-हरम की दीवारें हैं तकता
के किसी रोज़ ख़ुदा मिलेंगे आँखें हैं बेहोश कहाँ
उम्मीदें-कसक,बुजदिली-आवारगी क्या क्या हैं
ले जायें ये किस मोड मुझे अब कोई होश कहाँ
नितेश वर्मा
ग़र रूठता हैं तो वो रूठ जायें हमें ये होश कहाँ
उसे मनानें अब हम निकलें भी तो क्या निकलें
नजर झुका के हैं बैठा मेरा होना उसे होश कहाँ
ये झूठ मान वो दरहो-हरम की दीवारें हैं तकता
के किसी रोज़ ख़ुदा मिलेंगे आँखें हैं बेहोश कहाँ
उम्मीदें-कसक,बुजदिली-आवारगी क्या क्या हैं
ले जायें ये किस मोड मुझे अब कोई होश कहाँ
नितेश वर्मा
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