वो तो बस मेरी मुहब्बत ही बनके रही हैं
शायद हो! ये कही शायद तक ही सही हैं
मुझसे मिलनें की भी चाह उन्हें कहीं हैं
दिख रही है, उन आँखों की नमीं यही हैं
यूं ही बेपरवाह वो कहीं तो बिखर रहीं हैं
ये बयां करने को, अब मेरी जुबां नहीं हैं
तोड दिए हैं मैनें सारें रिश्तें उन यादों से
टूट चुका हूँ मैं मगर दिल अभ्भी वही हैं
नितेश वर्मा
शायद हो! ये कही शायद तक ही सही हैं
मुझसे मिलनें की भी चाह उन्हें कहीं हैं
दिख रही है, उन आँखों की नमीं यही हैं
यूं ही बेपरवाह वो कहीं तो बिखर रहीं हैं
ये बयां करने को, अब मेरी जुबां नहीं हैं
तोड दिए हैं मैनें सारें रिश्तें उन यादों से
टूट चुका हूँ मैं मगर दिल अभ्भी वही हैं
नितेश वर्मा
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