वो मुझसे प्यार करती हैं.. ..और मैं उससे.. ..बस इसमें फर्क इतना सा हैं.. ..वो दिल से दिल तक करती हैं.. ..और मैं ज़िस्म से ज़िस्म तक.. ..भूख से भूख तक..
कोई बातें महज जुबां तक आएं और कोई समझ ना पाएं तो उन शब्दों का कोई मतलब नहीं होता। ग़र खुद की निंदा से कोई सीख या समझ निकलती हो तो उसे स्वीकार करना चाहिएँ। इससे मनुष्य शांत और सुखद रहता हैं, कलेश क्षणिक मात्र भी नहीं होता हैं।
नितेश वर्मा और वो
कोई बातें महज जुबां तक आएं और कोई समझ ना पाएं तो उन शब्दों का कोई मतलब नहीं होता। ग़र खुद की निंदा से कोई सीख या समझ निकलती हो तो उसे स्वीकार करना चाहिएँ। इससे मनुष्य शांत और सुखद रहता हैं, कलेश क्षणिक मात्र भी नहीं होता हैं।
नितेश वर्मा और वो
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