इक खामोशी सी हैं इस कमरें में
बेजान सी बेआवाज हैं इस कमरें में
कोई सुनता नहीं शायद मीनारों की
कितनी परेशां सी हैं रात इस कमरें में
यूं ही बे-धडक चली आती हैं हवाएँ
जैसे सर्द रात आग हैं इस कमरें में
डूब चुका हैं ख्याल उसका आँखों में
सौंध सी बची हैं वो बस इस कमरें में
नितेश वर्मा
और
इस कमरें में
बेजान सी बेआवाज हैं इस कमरें में
कोई सुनता नहीं शायद मीनारों की
कितनी परेशां सी हैं रात इस कमरें में
यूं ही बे-धडक चली आती हैं हवाएँ
जैसे सर्द रात आग हैं इस कमरें में
डूब चुका हैं ख्याल उसका आँखों में
सौंध सी बची हैं वो बस इस कमरें में
नितेश वर्मा
और
इस कमरें में
No comments:
Post a Comment