Thursday, 1 January 2015

कोई कहता हैं कुछ हिसाब अभ्भी हैं

महज दो पल और 100 से भी ज्यादा बच्चें मारें गए, कुसूर शायद वो बच्चें थें। आर्मी स्कूल पेशावर, पाकिस्तान, बच्चों को सुबह लाईन में खडा करके उनकें आँखों और चेहरें पे गोली मार दी गई। कहा जा रहा यह हमला तालिबान के एक संगठन तहरीक ए तालिबान ने करवाया था। इस ऑपरेशन में जिहादियों के परिवारों पर हमले होते हैं, उनके बच्चों को मारा जाता है। तालिबान ने कहा, 'हमने स्कूल को निशाना बनाया क्योंकि सेना हमारे परिवारों को निशाना बनाती है। हम चाहते हैं कि वे हमारा दर्द महसूस करें।'

[ कुछ बयान जो इस हमलें के बाद सामनें आएं: नव-भारत टाईम्स

मैं बड़ा होकर सभी आंतकवादियों को मार दूंगा। उन्होंने मेरे भाई को मार डाला। मैं उन्हें बख्शूंगा नहीं, एक-एक को मार डालूंगा। - एक घायल बच्चा

जो बच्चे अब तक रो और चिल्ला रहे थे, मैंने देखा कि वे एक-एक कर गिरने लगे। मैं भी गिर गया। मुझे बाद में पता चला कि मुझे गोली लगी है - एक घायल बच्चा

मेरा बेटा सुबह यूनिफॉर्म में था, अब ताबूत में है। मेरा बेटा मेरा ख्वाब था। मेरा ख्वाब मारा गया। - ताहिर अली, मारे गए बच्चे के पिता ]

इस हमले की एक वजह पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई को मिला नोबेल पुरस्कार भी मानी जा रही है। पाकिस्तान के जानेमाने पत्रकार हामिद मीर ने एक भारतीय न्यूज चैनल से बातचीत में कहा कि मलाला को जब नोबेल प्राइज मिला, तब तालिबान ने ऐसा हमला करने की धमकी दी थी, इसलिए संभव है कि स्कूल को निशाना बनाकर शिक्षा का विरोध करने का संकेत दिया जा रहा हो।

वजह चाहें जो भी हो गर किसी देश को किसी दूसरें देश से बदला लेना हैं तो सीमा पे बैठें उन सैनिकों से लें, जो उनके मेहमान-नवाजी के लिए हमेशा तैयार रहतें हैं। बच्चों से, महिलाओं से या किसी बुजुर्ग से किस बात का बदला? उन्हें मार के कौन सा सियासत उनके हाथ आ जाऐगा। किसी देश के लिए इससे तुक्ष्य बात और क्या हो सकती हैं वो अपनें बदलें स्कूल के बच्चों से ले रहें हैं। वो बच्चें जो कल के भविष्य हैं, आज के रौशन हैं, उम्मीदें हैं। मैं खुद शर्मिंदा हूँ जो आज मैं यह दिन देख रहा हूँ। सियासी ना जानें कहाँ तक कौम को ले जाऐगी। वक्त और ना-जानें क्या-क्या दिखाऐगा। हम उन बच्चों और उनके परिवार वालों के लिए कामना करतें हैं भगवान उनकी आत्मा को शांति दे।

यूं तो बदलें की बची आग अभ्भी हैं
सीनें में उसके ये खंज़र तो अभ्भी हैं

कोई कहता हैं कुछ हिसाब अभ्भी हैं
तभी तो शहर में लगी आग अभ्भी हैं

नितेश वर्मा



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