कई बार परदें से इशारा करके वो मुझे बुला लेती हैं
मैं खामोश चला जाता हूँ जब वो मुझे बुला लेती हैं
मैं मुहब्बत-सा ही हूँ शायद अब वो समझ गयी हैं
जुबां से इंकार और आँखों से वो मुझे बुला लेती हैं
कितनी बेजान सी हैं ज़िंदगी बिन उसके अब तो
माँगता हूँ मौत तो सजदे में वो मुझे बुला लेती हैं
सब कहतें हैं मैं बस उसके ख्यालों से ही ज़िंदा हूँ
वर्ना मौसम आती नही और वो मुझे बुला लेती हैं
नितेश वर्मा
और
वो मुझे बुला लेती हैं
मैं खामोश चला जाता हूँ जब वो मुझे बुला लेती हैं
मैं मुहब्बत-सा ही हूँ शायद अब वो समझ गयी हैं
जुबां से इंकार और आँखों से वो मुझे बुला लेती हैं
कितनी बेजान सी हैं ज़िंदगी बिन उसके अब तो
माँगता हूँ मौत तो सजदे में वो मुझे बुला लेती हैं
सब कहतें हैं मैं बस उसके ख्यालों से ही ज़िंदा हूँ
वर्ना मौसम आती नही और वो मुझे बुला लेती हैं
नितेश वर्मा
और
वो मुझे बुला लेती हैं
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