सुबह अब कभी 11 बजे से पहले नहीं होती
ना ही सुबह जग जाने की कोई कशमकश
ना ही कुछ पा लेने की कोशिश होती है
और ना ही गमों में डूबे रहने की आदत है
इतना सब कुछ होते हुए, ये सब जानते हुए
दिल जाने क्यूं खुद से मुतमईन नहीं होता
हर वक़्त एक अजीब अनुभूति
जो बयां करने से परे होती हैं
मुश्किल होता है कभी-कभी खुदको समझाना
या हर दफा जब भी कोई बात थोपी जाती हैं
नुकसानदेह हो जाता है जीना
बोझ चंद साँसों की खुदको उठने नहीं देती
बिस्तर जिस्म को खुद में समेटकर सो जाता है
आँखों जगती हैं और साँसें भी चलती है मगर
सुबह अब कभी 11 बजे से पहले नहीं होती।
नितेश वर्मा
ना ही सुबह जग जाने की कोई कशमकश
ना ही कुछ पा लेने की कोशिश होती है
और ना ही गमों में डूबे रहने की आदत है
इतना सब कुछ होते हुए, ये सब जानते हुए
दिल जाने क्यूं खुद से मुतमईन नहीं होता
हर वक़्त एक अजीब अनुभूति
जो बयां करने से परे होती हैं
मुश्किल होता है कभी-कभी खुदको समझाना
या हर दफा जब भी कोई बात थोपी जाती हैं
नुकसानदेह हो जाता है जीना
बोझ चंद साँसों की खुदको उठने नहीं देती
बिस्तर जिस्म को खुद में समेटकर सो जाता है
आँखों जगती हैं और साँसें भी चलती है मगर
सुबह अब कभी 11 बजे से पहले नहीं होती।
नितेश वर्मा
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