क्या इतना ही गुनाह था कि हम गुलाब थे
काँटे भी थे हिस्से में दिल भी इज़्तराब थे।
हमने सजदे में ही गुजारी जिन्दगी तमाम
हमें कहाँ पता था के घर में भी शराब थे।
बड़े मुश्किल से ये जान बचाकर आये है
इतने नहीं थे परेशां जब हममें अज़ाब थे।
उनके तिश्नगी के चर्चें इस कदर थे वर्मा
शायर पागल औ' चेहरे हँसीं हिजाब थे।
नितेश वर्मा
काँटे भी थे हिस्से में दिल भी इज़्तराब थे।
हमने सजदे में ही गुजारी जिन्दगी तमाम
हमें कहाँ पता था के घर में भी शराब थे।
बड़े मुश्किल से ये जान बचाकर आये है
इतने नहीं थे परेशां जब हममें अज़ाब थे।
उनके तिश्नगी के चर्चें इस कदर थे वर्मा
शायर पागल औ' चेहरे हँसीं हिजाब थे।
नितेश वर्मा
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