Friday, 22 April 2016

क्या इतना ही गुनाह था कि हम गुलाब थे

क्या इतना ही गुनाह था कि हम गुलाब थे
काँटे भी थे हिस्से में दिल भी इज़्तराब थे।

हमने सजदे में ही गुजारी जिन्दगी तमाम
हमें कहाँ पता था के घर में भी शराब थे।

बड़े मुश्किल से ये जान बचाकर आये है
इतने नहीं थे परेशां जब हममें अज़ाब थे।

उनके तिश्नगी के चर्चें इस कदर थे वर्मा
शायर पागल औ' चेहरे हँसीं हिजाब थे।

नितेश वर्मा

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