Thursday, 7 April 2016

थोड़ा ज़ज्बाती तौर का लेखक था वो

थोड़ा ज़ज्बाती तौर का लेखक था वो
शाम की उस जिक्र में पापा ने कुछ ऐसे ही बताया था
डोमटोली में कोई पुरानी सी साइकिल चोरी हो गई थी
अखबार वाला अब 3 दिनों तक नहीं आनेवाला था
प्राइमरी स्कूल के इम्तिहान शुरु थे
कल सुबह दीदी को ससुराल लेकर जाना था
माँ के आचार महीनों से बे-बौय्याम थे
दादी की वो चारों धामों की जिरह अलग थी
और तुम्हारा वो फोन कॅाल करके कह देना-
के अब मैं तुम्हारी नहीं रही
जैसे लगा के शरीर में अब जाँ ही नहीं रही
कोलाहल सी वो शाम मायूस हो गई
फिर पड़ोस की काकी ने बताया
कि तुमने मुझे किसी बहाने सुबह बुलाया है
फिर लगा जैसे की सबकुछ ठीक ही है
उस लेखक का मरना
बड़े लोगों के शामों की जिक्र
डोमटोली का रोना-धोना
अखबार वाले के नित नये पैंतरे
बच्चों के इम्तिहान
घर के महिलाओं की खातिरदारी
बस एक तुम्हारे मेरे साथ हो जाने से
कैसे सब कुछ बेहतर हो गया।

नितेश वर्मा

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