वाहिद हूँ तेरे शहर में मैं मुहब्बत
लग जाऊँ गले जो दे दो इजाज़त।
नज़रे-सानी फरमाए वासोख़्त पर
दूर होके जीना भी होगा अज़ीयत।
नर्म दिल की किताब आप होंगी
वर्ना कौन रखता है दर्दों हैसियत।
दुश्मने-जाँ परेशां हैं यूं नकरा से
बैठ जाओ दो पल मेरी सोहबत।
लिबास ज़िस्म को सुकूँ देगी वर्मा
पर मुझको है जलाने की आदत।
नितेश वर्मा
लग जाऊँ गले जो दे दो इजाज़त।
नज़रे-सानी फरमाए वासोख़्त पर
दूर होके जीना भी होगा अज़ीयत।
नर्म दिल की किताब आप होंगी
वर्ना कौन रखता है दर्दों हैसियत।
दुश्मने-जाँ परेशां हैं यूं नकरा से
बैठ जाओ दो पल मेरी सोहबत।
लिबास ज़िस्म को सुकूँ देगी वर्मा
पर मुझको है जलाने की आदत।
नितेश वर्मा
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