इस दरिया पे नाज़ था जिनको भी बहुत
अब वो प्यासे हैं इस दरिया में उतरकर।
वह मेहरबानी जताते रहें ताउम्र हमारी
एक हमही थे खामोश वो आँखें पढ़कर।
नितेश वर्मा
अब वो प्यासे हैं इस दरिया में उतरकर।
वह मेहरबानी जताते रहें ताउम्र हमारी
एक हमही थे खामोश वो आँखें पढ़कर।
नितेश वर्मा
No comments:
Post a Comment