उम्रदराज़ चेहरें, बडी-बडी इमारतें, खिसियाती ये सूरज की किरणें और तुम्हें यूं साडी में अचानक देखना.. ऐसा तो छोडकर बिलकुल भी नहीं गया था मैं। शायद मेरे इस निजी सफ़र में सबकुछ बदल गया है, अब जो तुम्हें पाने आया हूँ तो अल्फ़ाज़ ही नहीं है.. लौट रहा हूँ बिन बताएं.. कुछ कसक हैं जो अब बयां नहीं हो पाऐंगे.. अमानत के तौर पे लिये जा रहा हूँ और ना ही कभी इसके बारें में कोई जिक्र होगा।
इस अमानत में कभी कोई ख़यानत नहीं आयेगी, मेरा यकीन रखना। तुम्हें और तुम्हारे इस शहर को अलविदा किये जा रहा हूँ, अब कभी मुलाकात नहीं होगी।
नितेश वर्मा
इस अमानत में कभी कोई ख़यानत नहीं आयेगी, मेरा यकीन रखना। तुम्हें और तुम्हारे इस शहर को अलविदा किये जा रहा हूँ, अब कभी मुलाकात नहीं होगी।
नितेश वर्मा
No comments:
Post a Comment