मुश्किल कितना रहते हो तुम
खुद को क्या समझते हो तुम।
दरिया से मेरे जिस्म के प्यास
समुंदर मुझको लगते हो तुम।
उन सर्दियों में नजाने क्या थीं
अब तक जो सुलगते हो तुम।
तुम्हारे साथ ही सफ़र हँसीं हैं
ख्यालों में यूं बहकते हो तुम।
नज़रें भी इबादतों सी हैं वर्मा
इन दुआओं में बहते हो तुम।
नितेश वर्मा और तुम।
खुद को क्या समझते हो तुम।
दरिया से मेरे जिस्म के प्यास
समुंदर मुझको लगते हो तुम।
उन सर्दियों में नजाने क्या थीं
अब तक जो सुलगते हो तुम।
तुम्हारे साथ ही सफ़र हँसीं हैं
ख्यालों में यूं बहकते हो तुम।
नज़रें भी इबादतों सी हैं वर्मा
इन दुआओं में बहते हो तुम।
नितेश वर्मा और तुम।
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