Friday, 8 April 2016

तेरे हाथों की लकीरों की गुस्ताख़ किताबत हूँ मैं

तेरे हाथों की लकीरों की गुस्ताख़ किताबत हूँ मैं
जिसको तेरी नज़रें कभी ना पढ़े वो आफ़त हूँ मैं
हमसफ़र मैं तुझे अपना कैसे ना कहूँ अब
तेरी बेचैनियों में आकर लगे के कोई राहत हूँ मैं।

नितेश वर्मा

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