तेरे हाथों की लकीरों की गुस्ताख़ किताबत हूँ मैं
जिसको तेरी नज़रें कभी ना पढ़े वो आफ़त हूँ मैं
हमसफ़र मैं तुझे अपना कैसे ना कहूँ अब
तेरी बेचैनियों में आकर लगे के कोई राहत हूँ मैं।
नितेश वर्मा
जिसको तेरी नज़रें कभी ना पढ़े वो आफ़त हूँ मैं
हमसफ़र मैं तुझे अपना कैसे ना कहूँ अब
तेरी बेचैनियों में आकर लगे के कोई राहत हूँ मैं।
नितेश वर्मा
No comments:
Post a Comment