मुझे पता है इतनी खामोशी में
मेरा लिखना असर नहीं होगा
ना तुम अर्ज़ का इरशाद करोगे
ना मैं सुनाने की कोई गुस्ताख़ी
ना तो कोई महफ़िल होगी और
ना ही कोई कहीं मुझसे पर्दा
मगर यह सबकुछ होते हुए भी
एक कमी होगी जो मुझमें ही
कहीं एक कसक सी छिपी होगी
मेरी खामोशियाँ मुझमें बेचैन होगी
मैं यातनाओं में रहूँगा शायद
फिर भी सबकुछ जानते हुए
नजाने क्यूं
ये कलम रूकती नहीं है
शायद लगता है इसे के
सबकुछ बदलेगा इक दिन
मैं, तुम और इस खामोशी के मायने।
नितेश वर्मा
मेरा लिखना असर नहीं होगा
ना तुम अर्ज़ का इरशाद करोगे
ना मैं सुनाने की कोई गुस्ताख़ी
ना तो कोई महफ़िल होगी और
ना ही कोई कहीं मुझसे पर्दा
मगर यह सबकुछ होते हुए भी
एक कमी होगी जो मुझमें ही
कहीं एक कसक सी छिपी होगी
मेरी खामोशियाँ मुझमें बेचैन होगी
मैं यातनाओं में रहूँगा शायद
फिर भी सबकुछ जानते हुए
नजाने क्यूं
ये कलम रूकती नहीं है
शायद लगता है इसे के
सबकुछ बदलेगा इक दिन
मैं, तुम और इस खामोशी के मायने।
नितेश वर्मा
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