कहानी जो किसी उम्मीद में सुनाओगे तो फिर बिखर जाऐंगे हम
कई दफा सोची है घर जाने की इस दफा जिक्र पे ही मर जाऐंगे हम
अब जो आग ही लगाकर बैठे हो खुद के घर में तो क्या कहें वर्मा
इस आग से बचाओगे तो जिल्लत से ही घुटकर मर जाऐंगे हम।
नितेश वर्मा
कई दफा सोची है घर जाने की इस दफा जिक्र पे ही मर जाऐंगे हम
अब जो आग ही लगाकर बैठे हो खुद के घर में तो क्या कहें वर्मा
इस आग से बचाओगे तो जिल्लत से ही घुटकर मर जाऐंगे हम।
नितेश वर्मा
No comments:
Post a Comment