सब्र कब तक रहें हम बेसब्रों के पास
जाँ आकर घुट गयीं है कब्रों के पास।
सियासत चली थी तेज हवाओं की यूं
लाशें बिछ गईं महज़ खबरों के पास।
आँखों में इतने आँसू मुख़्तलिफ बने
पानी भी गुमसुम हैं यूं अब्रों के पास।
अब क्या करके तुम मानोगे बातें मेरी
डर है ये कैसा मुझे मकबरों के पास।
मैं इस तल्ख़ में जीता रहा हूँ ऐ वर्मा
मन्नतें अधूरी हैं मेरी रहबरों के पास।
नितेश वर्मा
जाँ आकर घुट गयीं है कब्रों के पास।
सियासत चली थी तेज हवाओं की यूं
लाशें बिछ गईं महज़ खबरों के पास।
आँखों में इतने आँसू मुख़्तलिफ बने
पानी भी गुमसुम हैं यूं अब्रों के पास।
अब क्या करके तुम मानोगे बातें मेरी
डर है ये कैसा मुझे मकबरों के पास।
मैं इस तल्ख़ में जीता रहा हूँ ऐ वर्मा
मन्नतें अधूरी हैं मेरी रहबरों के पास।
नितेश वर्मा
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