Tuesday, 27 May 2014

ज़िन्दगी जीनें का सलीका सीखाती हैं।

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं, सामाज में रहनें के साथ उसे सामाज़िक प्रतिक्रियाओं के प्रति जबाब भी देना पडता हैं। वो सामाज के रीति-रिवाजों को अपनें हिसाब से करना चाहता हैं, जो कि इस संसार के नियमों के विरूद्ध हैं। मनुष्य को अपनें अतीत से सीखनें की कोशिश करनी चाहिए ना कि अतीत में उलझ के वर्तमान और भविष्य को दूषित। इंसान के कार्य करनें के कई रास्तें हो सकतें हैं परंतु हमें सदैव अच्छें रास्तें का अनुसरण करना चाहिए। हां बेशक इसमें देर हो सकता हैं कई अडचनें आ सकती हैं परंतु इसमें परिणाम सदैव इंसा के हक में ही होती हैं। यदि समय रहतें हम अपनें बहकें कदमों को नहीं सँभालते हैं तो वो हमें हमारी अंत के करीब ले जाता हैं, जो वास्तव में बेहद ही दुखदायी होता हैं। यदि एक बार कोई इंसान यह शपथ ले ले की वो आमरण सच्चाई के राह पे चलेगा तो हो सकता हैं वो सामाज़िक मतभेदों में फ़ँस जाएं लेकिन वो वास्तव में मन के मतभेदों को दूर कर वहीं मिलनें के लिए तैयार हो जाऐगा जहा से वो आया हैं। या यों कहें सुबह का भूला शाम को अपनें घर जाऐगा। ज़िन्दगी जीनें का सलीका सीखाती हैं ना कि उलझनों की राह दिखाती हैं।

..गुज़र चुका जो पल फिर से ना आऐगा..
..ज़िन्दगी ने दिखा दिया जो रंग..
..फिर से दिखानें ना आऐगा..

..सँभाल सको तो सँभाल लो तुम कदम अपनें..
..हकीकत की राह पे तुम्हें..
..गुनाह समझानें फिर ये नाम ना आऐगा..!

..नितेश वर्मा..


Monday, 26 May 2014

..की हैं गर तूनें निरंतर प्रयास..

प्रयास मनुष्य को उसके सफ़लता से जोडनें का काम करती हैं। यदि इंसान पूरी निष्ठा के साथ निरंतर प्रयास करें तो परिणाम उसकें पक्ष में ही होता हैं। प्रयास मनुष्य को उसकें असफ़ल होनें के कारण को बताती हैं और ये समझाती हैं कि अगली प्रयास किस दिशा में करनी चाहिए। प्रयास धैर्य और लगन के साथ करनी चाहिए। प्रयास इंसान के लिए जरूरी हैं, किए हुएं प्रयास ही उसके उन्नति में सहायक सिद्ध होती हैं।

..की हैं गर तूनें निरंतर प्रयास..
..फ़िर काहें का तू हारा हैं..

..मिलेगी मंज़िल तुझे भी इक दिन..
..प्रयासों से तू क्यूं हारा हैं..!

..नितेश वर्मा..


..जो गुनाहों के शहर..

..दर्द का दर्द समेटें चला हैं..
..वो मासूम हैं..
..जो गुनाहों के शहर..
..खुद को समेटें चला हैं..

..हर मंदिर-मस्ज़िद से हैं वो हो आया..
..सर पे लगा हैं इल्ज़ाम ऐसा..
..जो खुदा भी ना उसका हैं मिटा पाया..

..वो आहिस्तें-आहिस्तें ही करता हैं..
..ज़िक्र अपनी इरादों का..
..धडकनों में जो हैं बसा..
..वो ख्वाबों से उसे जोड आया हैं..

..हर आहटों पे वो तकता हैं रातें कई..
..पता ना किया हैं वो ज़ुर्म क्या..
..जो खुद से परेशां रहता हैं..

..दर्द का दर्द समेटें चला हैं..
..वो मासूम हैं..
..जो गुनाहों के शहर..
..खुद को समेटें चला हैं..!

Sunday, 25 May 2014

Nitesh Verma Poetry

..शहर की आवाज़ों में आज़ आग लग गयीं..
..मेरी जब बारी आई तो धडकन सबकी खामोश लग गयीं..

..अब किसे सुनाऊँ मैं अपने ज़श्न की बारात..
..मेरी बारात जब शहर की मय्यत से गुजर गयीं..!

..नितेश वर्मा..

प्यार होना जरूरी नहीं हैं प्यार से होना जरूरी हैं।

एक दीवाना जिसे अपनें महबूब की तलाश रहती हैं। वो हर वक्त बस उसे ही ढूँढता फ़िरता हैं। राह चलतें उसे वो किसी के मकानों की छवि की में मिल जाती हैं,तो कभी किसी के आँखों में। वो उसके प्यार में कुछ इस तरह से बँधा हुआ हैं कि वो गर उसे किसी और की बाहों में देखता हैं तो नाराज़ होनें के बज़ाएँ उसके चेहरें के दीदार को लेके प्रसन्नचित हो जाता हैं। उसकी खूबसूरती कुछ ऐसी हैं कि उसे उसके सिवाएं कुछ और दिखता ही नहीं। वो सारें जहां को भूल अपनें महबूब के विचारों में डूबा रहता हैं। शायद वो काल्पनिक हो लेकिन वाकई अद्धूत हैं। प्यार इंसान के खुशी से जुडी होती हैं वो उसके स्वरुप से होती हैं। प्यार में बस प्यार की जगह होनी चाहिए फ़र्क नफ़रत द्वेष इर्ष्या ये तो सब मनुष्य को उसके अंत से जोडता हैं। प्यार होना जरूरी नहीं हैं प्यार से होना जरूरी हैं।


..जिस गली से गुजरा आँखों में सबके तुम्हें देख गुजरा..
..उफ़ कितनी खूबसूरत लगती हो तब भी तुम..
..बाहों में जब किसी के तुम्हें देख गुजरा..!


Saturday, 24 May 2014

..मैं मुकर जाता तो अच्छा था..

..मैं मुकर जाता तो अच्छा था..
..गलत था लेकिन सुधर जाता तो अच्छा था..

..अब हयां की शोख़ियों का मैं क्या करूं..
..दीवार के किनारों पे पहरा लग जाता तो अच्छा था..

..मैं बीत के रह गया लम्हात जो तेरा था..
..आँखों में तेरें जो हो जाता तो अच्छा था..

..और क्या सुनाऊँ मैं गिरे-हाल अपना..
..दर्द-ए-दिल तेरें बाहों में कर जाता तो अच्छा था..

..मैं बातों से अपनें मुकर जाता तो अच्छा था..
..तन्हा था तेरी बाहों में हो जाता तो अच्छा था..

..कोई किस्सा तु भी सुनाती मुझे..
..तेरी जुल्फ़ों में कैद हो जाता तो अच्छा था..!



Friday, 23 May 2014

..खामोशियों के भी कई चेहरें हो गए..

..सारें के सारें राज़ बदल गए..
..खामोशियों के भी कई चेहरें हो गए..
..ढूँढ सकूं कोई अपना इस जहां से..
..घर के घर नक्शें बदल गए..

..लिए चला था जो सेहरां खुद का..
..इस तपन से उलझ के रह गए..
..आँखें लगती रही मुकाम मेरी..
..किस्मत जल के मेरें रह गए..

..ख़्वाबों के जहां भी अब फ़रेब हो गए..
..ढूढां करता था जो सकूं..
..वो बाहें भी रकीब के होके रह गए..
..अब इन खामोशियत से तुम पेहरा हटाओं वर्मा..
..समुन्दर के समुन्दर आँखों से बह गए..!


Thursday, 22 May 2014

..ज़िन्दगी में कई मुकाम ऐसे आए..

..ज़िन्दगी में कई मुकाम ऐसे आए..
..अपनों में बेवज़ह कई नाम ऐसे आए..
..बिगडता रहा मैं अपनी बातों से..
..ज़िन्दगी में परेशां कई रात ऐसे आए..

..ख़्वाबों में कई चेहरें ऐसे आए..
..कालें-धुँधलें पर गहरें से आएं..
..मन की विवेचनाओं पे अब अधिकार नहीं मेरा..
..ज़िन्दगी में कई मुकाम ऐसे आए..

..शहर के शहर बस्ती के बस्ती जल गए..
..इन घनी रौशनी में अब अँधेरें घर कर गए..
..मेरें सारें सियासत धरे के धरे रह गए..
..मौत से जब हम रू-ब-रू हो गए..

..सारें काम मिट्टी में मिल के रह गए..
..जब मरनें के बाद हम मिट्टी में रह गए..
..अब लफ़्ज़ों में भी मेरे दम नहीं..
..खुद में यें घुट के रह गए..

..कहानी-कविता अब कौन लिखें..
..जब दूसरों में ही हम रह गए..
..ज़िन्दगी में कई मुकाम ऐसे आए..
..अपनों में बेवज़ह कई नाम ऐसे आए..!


Wednesday, 21 May 2014

..सताती ना तेरी याद तो मैं भी काम का होता..

..ज़मानें की सलवटों में ढाल दिया गया हूँ..
..मैं सिक्कों की तरह यूं खुलेआम उछाल दिया गया हूँ..
..बटोरनें को तो यूं सारा ज़माना चाहता हैं मुझे..
..दिल से जो मैं तेरे निकाल दिया गया हूँ..

..तुम्हारें ख़्वाबों के बाद जहां और भी हैं..
..किसी ने कहा था इस लडकी के बाद शमां और भी हैं..
..मैं कैसे मान बैठूं उसकी बातों को..
..कहीं कभी जां के बाद ज़िन्दगी और भी हैं..

..सताती ना तेरी याद तो मैं भी काम का होता..
..ज़िन्दगी में दो पल ही सहीं पर सूकूं का तो होता..
..अब कौन बताएँ ज़मानें को यूं फ़रेब की बात..
..मुहब्बत ना होता उनसे तो कुछ और होता..!

..नितेश वर्मा..


..वो दिल से भूल बैठी हैं मुझे..

..वो दिल से भूल बैठी हैं मुझे..
..जैसे जमानें के वसूलों से तौल बैठी हैं मुझे..
..छुपानें को मुझे अब मेरा चेहरा नहीं..
..चेहरें से मेरे वो भूल बैठी हैं मुझे..

..अब कोई बात रास नहीं आती..
..कोई साज़ धडकन नहीं सुनाती..
..बतानें को तो हैं यूं बहोत कुछ..
..लेकिन यें ज़मीर बिन-तेरे मुझे शायर नहीं बताती..!


Tuesday, 20 May 2014

..हम इश्क में तेरे यूं हद तक जाऐंगें..

..यूं दिल को तेरी गलियों में हम छोड जाऐंगें..
..आँखों में हैं बसा तेरा चेहरा तुझे अपना कर जाऐंगें..

..होंठों पे हैं तेरा पेहरा आँखों में सपनें तेरे..
..बाहों में अब तुझे हम कर जाऐंगें..

..ज़िन्दगी के अरमां हैं यूं ही बिखरें पडे..
..साँसों से इसे तेरे पूरा कर जाऐंगें..

..हम इश्क में तेरे यूं हद तक जाऐंगें..
..गर दिल में हैं तेरा चेहरा तो दिल तेरा कर जाऐंगें..!

..नितेश वर्मा..

Nitesh Verma Poetry

[1] ..अब कोई कहानी सुनानी नहीं..
..किसी को भी कोई बात बतानी नहीं..
..अपनों से क्या परायों से क्या..
..दिल को खुद दिल की बात बतानी नहीं..

[2] ..होते हैं कान दीवारों के भी..
..सीनें को कहीं अब यूं ही लगाना नहीं..
..मुहब्बत ये तुम्हारी खुलेआम बताती हैं..
..आँखों पे तेरे ठहर जाना नहीं..

[3] ..कोई इलाज़ कर जाओ तो बताओ..
..होंठों पे हैं कोई बसा अलग कर जाओ तो बताओ..
..यूं सरेआम ना बनाओं मज़ाक मेरा..
..मेरे हक में कुछ कर जाओ तो बताओ..

[4] ..तय कर लिया हैं मैंनें मंज़िल..
..अबके चाहें हो समन्दर पार किए जाऊँगां..
..किस्मत में होगी तो ज़िंदा..
..या फ़िर मुर्दा तैरता जाऊँगां..!

..नितेश वर्मा..


Monday, 19 May 2014

..अए मौत मुझे इस कहानी से ले जाओ..

..इन उदासी इन ख़ामोशी को ले जाओ..
..ज़िन्दगी से मेरे इन परेशानी को ले जाओ..
..बहोत थक चूका हूँ इस ज़िन्दगी से..
..अए मौत मुझे इस कहानी से ले जाओ..

..कोई और बताया लम्हा गुजार के देखूं..
..मुहब्बत से मैं भी तुझे पुकार के देखूं..
..वो आ जाएं तो ठीक..
..वर्ना सीनें से दिल आज़ निकाल के देखूं..

..अब किस बात की देर हैं..
..लम्हा तेरा ढलता नहीं या रात की देर हैं..
..अँधेरें में ही करोगें क्या गूफ़्तगूं हमसे..
..या मेरी बाहों में आने तक का देर हैं..!

..नितेश वर्मा..

भारतीय जनता पार्टी को जीत की आपार शुभकामनाएँ

..ये ज़िन्दगी एक शाम लेके आया हैं..
..खुशियों की घनी बरसात लेके आया हैं..

..ज़िम्मेदारियाँ भी आई हैं साथ..
..ये चुनाव जो मोदी-राज़ लेके आया है..

मोदी एवं उनके समस्त भारतीय जनता पार्टी को जीत की आपार शुभकामनाएँ।
विकास की आस बंधी रहेगी।

..नितेश वर्मा..


..तुम गुजर के जाओगें जब मेरे मुकाम से..

..इस तरह से वो लौटा देता हैं कर्ज़ मेरा..
..मरनें के बाद मुझे खुद में मिला देता हैं कोई दर्द की तरह..

..उठना भी चाहूँ तो नाकाम हो बैठू..
..इस तरह वो सीनें में मुझे दबाएँ रखता हैं..

..ज़िन्दगी के गीत अब सुनानें मुश्किल हैं..
..मौत से पहलें इतनें दर्द कोई गलें लगाएँ रखता हैं..

..सियासत-फ़रेब, सवाल-जबाब..
..हर होंठों पे बसा यें कानूनी किताब..
..रट्टा हर ज़ुबान लगाएँ बैठा हैं..
..फ़िर भी अँधेरों में तीर चलाएँ बैठा हैं..

..हर मकान से होके गुजरा हूँ दर्द के करीब होके गुजरा हूँ..
..दामनें-ए-हर्श वो कैसे बताऊँ माँ के सूजें चेहरें को जो देख गुजरा हूँ..

..तुम गुजर के जाओगें जब मेरे मुकाम से..
..दर्द समेटें और अपनी हंसी मुस्कुराहट को दफ़न कर जाओगें..!

..नितेश वर्मा..

..ये सर हैं जो कटतें नहीं गुनाहों के बोझ..

..मेरे माथें से हटतें नहीं गुनाहों के बोझ..
..सर सहतें नहीं ये इल्ज़ामों के बोझ..
..कौन-कौन खडा हैं हिसाबों के चक्कर में..
..ये सर हैं जो कटतें नहीं गुनाहों के बोझ..

..सबनें दिया हैं इम्तहान अपना..
..किश्तों में ही सही दिया हैं सबनें जान अपना..
..मैं रुठता हूँ तो इसमें हर्ज़ ही क्या हैं..
..क्यूं नकाबों के आडे दिया हैं सबनें पहचान अपना..

..लूटता रहा ज़माना अब समेटें किस काम..
..हमारें हथ्थें चढें सारें कानूनी किताब..
..अब रग-रग हैं धूँधला चेहरें पे हैं फ़रेब..
..और खुदा तुम हिसाब करतें हो वो भी सारें सफ़ेद..

..अए वर्मा अब किस बात की गज़ल सुनानें आऐ हो..
..सीनें में हैं तुम्हारें राख ये जतानें आऐ हो..
..बस करों अब रहनें दो इंसा से इंसानियत की बात..
..सियासत से जो तुम सब बिगाड आऐ हो..!

..नितेश वर्मा..



Thursday, 15 May 2014

..मनुष्य हो फ़िर भी भगवान हो बैठे हो तुम..

..क्या कहतें हो तुम मुझमें रहते हो तुम..
..मेरें साँसों से मेरे आहटों में बसते हो तुम..

..हर कहानी सुनाता हूँ..
..और तुम तक पहोच जाता हूँ..
..और ख़ामाखाह मुझे परेशां करतें हो तुम..

..कोई बुनता ना होगा धागा ऐसा..
..खून के लकीरों से मेरे बनतें हो तुम..

..अब कोई ज़िद ना करना तुम..
..कदमों में तेरे ये दुनियाँ रखतें हैं हम..

..मेरे दिल के बैठे विचारों को समझ बैठे हो तुम..
..अरे जाओ..!
..मनुष्य हो फ़िर भी भगवान हो बैठे हो तुम..

..क्या कहतें हो तुम मुझमें रहते हो तुम..
..मेरें साँसों से मेरे आहटों में बसते हो तुम..!


Wednesday, 14 May 2014

..वो दिल से बगावत कर बैठा हैं..

..वो दिल से बगावत कर बैठा हैं..
..मुहब्बत तो दूर वो नफ़रत से भी दूर बैठा हैं..
..किसी भी मामलों में शिकस्त ना हो उसकी..
..वो इस ख़्याल से दूर बैठा हैं..

..दिल निकाल के रक्खा था मैंनें..
..देख मुझे वो निगाहें फ़ेर बैठा हैं..
..नाराज़ हैं वो मुझसे..
..मेरे बातों से वो बहोत दूर बैठा हैं..

..दिल-धडकन, रेंत-समुन्दर..
..तुम और मैं सबको किनारें कर बैठा हैं..
..जैसे लहरों से कोई पानी किनारें कर बैठा हैं..

..वो कैसे मेरे ज़िन्दगी से दूर बैठा हैं..
..निगाहें फ़ेर मुझसे वो मुझमें ही बैठा हैं..
..वो दिल से बगावत कर बैठा हैं..
..मुहब्बत तो दूर वो नफ़रत से भी दूर बैठा हैं..!

..हर ज़िंदा लाश में हो तुम..

..हर ज़िंदा लाश में हो तुम..
..दर्द हो लेकिन जां लिए बैठे हो तुम..

..रहनें को घर नहीं..
..और फ़कत आसमान लिए बैठें हो तुम..

..मेरी मुहब्बत को इफ़्क बतातें हो तुम..     [इफ़्क = मिथ्या,असत्य]
..और ज़िन्दगी के आरमान लिए बैठें हो तुम..

..सयाना ही हैं ये रूबाब तुम्हारा..
..ज़िन्दगी से मेरे मौत लिए बैठे हो तुम..

..हर ज़िंदा लाश में हो तुम..
..दर्द हो लेकिन जां लिए बैठे हो तुम..!


Tuesday, 13 May 2014

Nitesh Verma Poetry

..ज़िन्दगी के हर एहसास में हो तुम..
..इंसा हो मगर मेरे खुदा के जहां से हो तुम..

..अब क्या बताउँ मैं तुम्हें मैं अपनें दिल की जात..
..मेरे हर लफ़्ज़ों से बंधें एहसास हो तुम..!

..चाँद से खूबसूरत जो चाँद उतरा हैं..

..तुम्हारें बातों से एक राज़ उतरा हैं..
..दिल में जो था मेरा चेहरा..
..वो आज साफ़ उतरा हैं..

..बतानें को और भी थें कई बात..
..लेकिन आँखों में थें जो तुम्हारें उतरा हैं..
..वो नाम वो शख्स..
..आज़ जमानें से आसमां पे उतरा हैं..

..कितनी मासूमियत दिल्लगी हैं तुम्हारी..
..देख तुम्हारी चेहरें से ये पयाम उतरा हैं..

..कितनी शिद्दत से एक राज़ उतरा हैं..
..महबूब के आँखों में था जो प्यार..
..वो आज़ आँखों में उतरा हैं..

..अब ज़मानें की परवाह नहीं..
..मुहब्बत मेरी जो यूं सरेआम उतरा हैं..
..आसमां भी चुप रहता हैं अब..
..चाँद से खूबसूरत जो चाँद उतरा हैं..!


Sunday, 11 May 2014

..इस गंदी सियासत में अब कौन उतरेगा..

..खामोश ही रहेंगें इज्जत बनाऐंगें..
..कुछ बोल के भी हम क्या उखाड पाऐंगें..

..ये सियासत हैं मेरे दोस्त..
..तुम्हारें घर का कमरा नहीं..
..जो पसंद ना आए तो उखाड फ़ेंकेंगें..

..खामोश ही रहेंगें सर बचाऐंगे..
..आपकी तरह हम प्रशासन में ना आऐंगें..

..मुँह की बल अब कौन गिरेगा..
..इस गंदी सियासत में अब कौन उतरेगा..

..खामोश ही रहेंगें हम सारें..
..कम से कम हम जां से तो रहेंगें हम सारें..!

..मेरे माँ के सज़दें का हिसाब देते जाओ..

..मर रहें हो तो क्या दुनियाँ के हिसाब देते जाओ..
..माँ के दामन का भरा प्यार लेते जाओ..

..खुदा के जहां भी होता हैं हिसाब सबका..
..माँ के हिस्सें का एहसास लेते जाओ..

..शहर जा रहें हो तो जाओं..
..मगर माँ के आँसू का हिसाब देते जाओ..

..अब और नहीं हैं बताना मुझे तुमको..
..मेरे माँ के सज़दें का हिसाब देते जाओ..!

ममता स्वरूप माँ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ 

..ख्वाबों का आसमां दे जाओ..

..ख्वाबों का आसमां दे जाओ..
..ये उमस भरी रात ले जाओ..

..मैं बिखरता रहा जमानें में यूं ही..
..मेरे हिस्से का मुझे इनाम दे जाओ..

..हुआ हैं जो कुछ भी मेरे हिस्से में..
..मेरे किस्मत का लिखा किताब मुझे दे जाओ..

..हर उम्मीद टूटा हुआ हैं इस कदर..
..मेरे माथें का लगा इल्ज़ाम मुझे दे जाओ..

..मुहब्बत की भरी शाम कायनात ले जाओ..
..उम्र भर का लिक्खा हिसाब ले जाओ..!

..हर आरज़ू पूरी कर दी तुमनें..

..हर आरज़ू पूरी कर दी तुमनें..
..दोस्ती जताई और ज़िन्दगी पूरी कर दी तुमनें..

..लूटाया था मैंनें अपनें हिस्से का सारा सिक्का..
..बढाया हाथ और हसरत पूरी कर दी तुमनें..

..अब कैसे समझाओगें खुद को अए वर्मा..
..मौत भी बुलाया तो हिसाब पूरी कर दी तुमनें..

..अब कोई शख्स नहीं हैं तेरे जैसा यहां..
..इस जहां को मैंनें भूलाया तो सर आसमां कर दी तुमनें..

..हर आरज़ू पूरी कर दी तुमनें..
..दोस्ती जताई और ज़िन्दगी पूरी कर दी तुमनें.. !

..दिल की लगी आग बुझा जाओ तो अच्छा हैं..

..दिल की लगी आग बुझा जाओ तो अच्छा हैं..
..मुझसे मुहब्बत जता जाओ तो अच्छा हैं..

..कोई और चाहता नहीं मैं तुम्हारें सिवा..
..मुझमें भरी रात बीता जाओ तो अच्छा हैं..

..शहर से हैं दूर सब..
..मेरी पहोच में आ जाओ तो अच्छा हैं..

..बहोत सनें हैं ये हाथ खून से..
..समुन्दर में ही सही धूल जाओ तो अच्छा हैं..

..आवारा गलियों की तरह यूं ही फ़िरतें हो..
..मुझसे मिल जाओ तो अच्छा हैं..

..रहता हूँ मैं बहोत बिखरा अए वर्मा..
..लबों से ही सही किनारें कर जाओ तो अच्छा हैं..

..दिल की लगी आग बुझा जाओ तो अच्छा हैं..
..मुझसे मुहब्बत जता जाओ तो अच्छा हैं..!

..मेरे चेहरें की मुस्कान हो तुम..

..मेरे चेहरें की मुस्कान हो तुम..
..मेरे दिल की दबी अरमान हो तुम..
..मेरे मेरे लबों पे सजी हो हर-पल..
..मेरे ज़िन्दगी की सबसे बडी कमान हो तुम..
..मेरे चेहरें की मुस्कान हो तुम..

..वक्त बेवक्त जो बताया करता था..
..देख जो तुम्हें मुस्कुरायां करता था..
..सीनें की बसी जान हो तुम..
..आँखों की बँधी आस हो तुम..
..अए मेरी मुहब्बत..
..मेरे चेहरें की मुस्कान हो तुम..

..फ़लक से ज़मी तुम ही तुम हो..
..हरकत मेरी तुम ही तुम हो..
..अब और सताया नहीं हैं..
..ये दिल किसी दर्द का..
..मुहब्बत भरी एहसास हो तुम..
 ..मेरे चेहरें की मुस्कान हो तुम..!



Friday, 9 May 2014

..मैं वो इंसा हूँ जो दिल में सिकन्दर लिए चलता हूँ..

..दर्द का समुन्दर लिए चलता हूँ..
..मैं वो इंसा हूँ जो दिल में सिकन्दर लिए चलता हूँ..

..शहरें दिल की जब बात आती हैं..
..मैं सियासत में हूँ फ़िर भी सरेआम निकल चलता हूँ..

..वो सताया हैं किसी गम का..
..मेरे हिस्सें से मैं एक किताब लिए चलता हूँ..

..किसी मोड मिल जाएं ख़रीदार मेरा..
..चेहरें पे मैं मुस्कान लिए चलता हूँ..

..और कुछ बताना हैं इस आवाम को..
..खाली हाथ मैं भरें-रात निकल पडता हूँ..

..किसी और का सताया होगा वो..
..ज़ुर्म सारें हिन्दुस्तां के सर लिए चलता हूँ..

..मैं थकना चाहता नहीं मैं ये बात कहना चाहता हूँ..
..तुम खूब खर्च करों मेरे यार मैं तुमसे मुकर जाना चाहता नहीं..

..अब क्या सँभालेगी दर्द की दास्तां मुझे..
..मैं सियासत से बगावत किए चलता हूँ..

..दर्द का समुन्दर लिए चलता हूँ..
..मैं वो इंसा हूँ जो दिल में सिकन्दर लिए चलता हूँ..!


Thursday, 8 May 2014

..निकालों मेरा दिल और अपना इनाम ले जाओ..

..इस अँधेरें से एक चिराग ले जाओ..
..जो बचा हैं मेरा हिस्सा मेरे हाथ दे जाओ..

..अब नहीं हैं जताना मुझे आशिकी तुमसे..
..निकालों मेरा दिल और अपना इनाम ले जाओ..

..बहोत जी लिया तुमनें मेरें कंधों के सहारें..
..होंठों पे मेरे पडे लफ़्ज़ को किनारें कर जाओ..

..मेरे हिस्सें में पडी हैं धूप..
..ज़ुल्फ़ें बिखेरों और आसमान कर जाओं..

..अब इन्तहां कर दी तुमनें इम्ताह की..
..सपनों में आके मेरे मुझे बर्बाद कर दी..

..अब सबर नहीं होता मेरी जान..
..मानों तो मेरी मेरे हिस्सें से ये रात ले जाओं..

..इस अँधेरें से एक चिराग ले जाओ..
..जो बचा हैं मेरा हिस्सा मेरे हाथ दे जाओ..!


Wednesday, 7 May 2014

..मौत नें चैंन से मुझे कभी बुलाया नहीं..

..एक वक्त से उसने मुझे बुलाया नहीं..
..जो था लम्हा उसका..
..उसने मुझे अपना बनाया नहीं..

..यादों में मुझे अपने बसाती हैं..
..जो मुहब्बत था दिल से कभी जताया नहीं..

..याद आ जाता था..
..शाम की काँफ़ी की तरह मैं अक्सर..
..उसने मुझे कभी दिल से भूलाया नहीं..

..रहमों-दरम मिलतें हर ज़र्रें में मेरे..
..चेहरें को छू के कभी उसने बताया नहीं..

..एक अरसां सा हो गया हैं..
..वो देर से ही सहीं मुझे देख कभी मुस्कुरायां नहीं..

..अब लम्हात हमारें कटतें नहीं..
..मौत को दावां दिया एक अरसां हो गया हैं..

..अब बेचैंनी ही बची हैं इस ज़िन्दगी में..
..मौत नें चैंन से मुझे कभी बुलाया नहीं..!


Monday, 5 May 2014

..कभी धूप मेरे हिस्सें भारी पडी कभी पानी..

..रेंत से समुन्दर का सफ़र तय किया हैं..
..जो भी किया हैं खुद से किया हैं..

..कभी धूप मेरे हिस्सें भारी पडी कभी पानी..
..मैंनें खतरों से ये ज़िन्दगी तय किया हैं..

..हर रोज़  जलाता था जो मैं दीया..
..आँखों से अपनें बुझा दिया हैं..

..तेरे नाम से जो रौशनी बनती थीं..
..वो अँधेरों से छूपा दिया हैं..

..अब मत कर मुझे अपनें हवालें..
..ज़िन्दगी को मैंनें मौत से मिला दिया हैं..

..तू बेसबर हैं मेरे हौसलों की तरह..
..मैंनें चेहरें को तेरे सपनों से मिला दिया हैं..

..मैंनें दिल से तुझे अब ठुकरा दिया हैं..
..शायरी से मैंनें ये सबको समझा दिया हैं..

..अब ख़ामोश ही रहना तुम मेरे मामलों में..
..मैंनें ज़िन्दगी से तुम्हें अपनी निकाल दिया हैं..!


Friday, 2 May 2014

..मेरे मरने के बाद मुझपे आसमान गिरा देना..

..मेरे मरने के बाद मुझपे आसमान गिरा देना..
..चाहें रोना खूब..
..मगर आँखों से मेरी तस्वीर गिरा देना..!

..अब कसम ना देना मुझे अपनी सोहबत की..
..मौत देना लेकिन कोई यार मत गिरा देना..!

..जुदा होना ही किस्सा होता हैं..
..मगर अगर पहलूं में तेरा आँचल हो..
..तो जीना ही अच्छा होता हैं..!

..सारें करम गिनाएँ जातें हैं..
..जब ख़ुदा के पास हमें बुलाएँ जाते हैं..!

..हम तेरे पहलूं में ही जी लेते..
..आँचल फ़ैला के तुमनें बेइमान बना दिया..!


Thursday, 1 May 2014

Nitesh Verma Poetry

[1] ..मैं मासूम वो सयाना हैं..
..दिल में हैं मेरे दर्द..
..लेकिन लफ़्ज़ों से उसे चुराना हैं..

..सून लेगा वो तो कयामत हो जाऐगी..
..आँखों से आँसू मेरे यूं ही बह जाऐगी..

..याद करने की उसे अब जरूरत नहीं..
..भगोडी मुहब्बत यूं ही मेरी चलती जाऐगी..!

[2] ..दफ़न करके रक्खा हैं सबने..
..दिल में ना जाने क्या बात..
..फ़ेर दो जो हाथ तो आँखें नम हो जाती हैं..!

[3] ..शिकवा हैं शिकायत हैं..
..तुमसे की जो मुहब्बत..
..तो हुई एक बगावत हैं..

..अब नाम लेने का दिल नहीं होता..
..साँसों पे मेरे जो हुई तेरी सियासत हैं..!

[4] ..अब तल्ख़ भारी हैं नाम में मेरे क्या रक्खा हैं..
..जादूई ये राज़नीति हैं अब वक्त में क्या रक्खा हैं..!


..मुहब्बत इक पैगाम हैं..

..मुहब्बत इक पैगाम हैं..
..जिससे हुई बात आज़ आम हैं..

..खबरें बनानें को ये मंज़र बनी हैं..
..चेहरें पे बनी शर्म हुई आज़ काम हैं..

..ये मुहब्बत..
..ज़िन्दगी को हरानें की रस्सी बनी हैं..
..दिल से मुझे गिरानें की मकसद बनी हैं..

..सूरत तेरी अब मैली हो गई हैं मेरी लैला..
..आँखों में मेरे..
..बसी तस्वीर तेरी कुछ धूँधली सी पडी हैं..

..सितम दिल पे मेरे तेरे अब हैं भारी पडे..
..मासूम ज़िन्दगी..
..मेरी अब लूट के रह गयीं हैं..

..मुहब्बत में हैं जो दर्द "अए वर्मा"..
..वो लफ़्ज़ों में बस के रह गयी हैं..!