Sunday, 25 May 2014

Nitesh Verma Poetry

..शहर की आवाज़ों में आज़ आग लग गयीं..
..मेरी जब बारी आई तो धडकन सबकी खामोश लग गयीं..

..अब किसे सुनाऊँ मैं अपने ज़श्न की बारात..
..मेरी बारात जब शहर की मय्यत से गुजर गयीं..!

..नितेश वर्मा..

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