Thursday, 8 May 2014

..निकालों मेरा दिल और अपना इनाम ले जाओ..

..इस अँधेरें से एक चिराग ले जाओ..
..जो बचा हैं मेरा हिस्सा मेरे हाथ दे जाओ..

..अब नहीं हैं जताना मुझे आशिकी तुमसे..
..निकालों मेरा दिल और अपना इनाम ले जाओ..

..बहोत जी लिया तुमनें मेरें कंधों के सहारें..
..होंठों पे मेरे पडे लफ़्ज़ को किनारें कर जाओ..

..मेरे हिस्सें में पडी हैं धूप..
..ज़ुल्फ़ें बिखेरों और आसमान कर जाओं..

..अब इन्तहां कर दी तुमनें इम्ताह की..
..सपनों में आके मेरे मुझे बर्बाद कर दी..

..अब सबर नहीं होता मेरी जान..
..मानों तो मेरी मेरे हिस्सें से ये रात ले जाओं..

..इस अँधेरें से एक चिराग ले जाओ..
..जो बचा हैं मेरा हिस्सा मेरे हाथ दे जाओ..!


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