एक दीवाना जिसे अपनें महबूब की तलाश रहती हैं। वो हर वक्त बस उसे ही ढूँढता फ़िरता हैं। राह चलतें उसे वो किसी के मकानों की छवि की में मिल जाती हैं,तो कभी किसी के आँखों में। वो उसके प्यार में कुछ इस तरह से बँधा हुआ हैं कि वो गर उसे किसी और की बाहों में देखता हैं तो नाराज़ होनें के बज़ाएँ उसके चेहरें के दीदार को लेके प्रसन्नचित हो जाता हैं। उसकी खूबसूरती कुछ ऐसी हैं कि उसे उसके सिवाएं कुछ और दिखता ही नहीं। वो सारें जहां को भूल अपनें महबूब के विचारों में डूबा रहता हैं। शायद वो काल्पनिक हो लेकिन वाकई अद्धूत हैं। प्यार इंसान के खुशी से जुडी होती हैं वो उसके स्वरुप से होती हैं। प्यार में बस प्यार की जगह होनी चाहिए फ़र्क नफ़रत द्वेष इर्ष्या ये तो सब मनुष्य को उसके अंत से जोडता हैं। प्यार होना जरूरी नहीं हैं प्यार से होना जरूरी हैं।
..जिस गली से गुजरा आँखों में सबके तुम्हें देख गुजरा..
..उफ़ कितनी खूबसूरत लगती हो तब भी तुम..
..बाहों में जब किसी के तुम्हें देख गुजरा..!
..जिस गली से गुजरा आँखों में सबके तुम्हें देख गुजरा..
..उफ़ कितनी खूबसूरत लगती हो तब भी तुम..
..बाहों में जब किसी के तुम्हें देख गुजरा..!
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