Thursday, 1 May 2014

Nitesh Verma Poetry

[1] ..मैं मासूम वो सयाना हैं..
..दिल में हैं मेरे दर्द..
..लेकिन लफ़्ज़ों से उसे चुराना हैं..

..सून लेगा वो तो कयामत हो जाऐगी..
..आँखों से आँसू मेरे यूं ही बह जाऐगी..

..याद करने की उसे अब जरूरत नहीं..
..भगोडी मुहब्बत यूं ही मेरी चलती जाऐगी..!

[2] ..दफ़न करके रक्खा हैं सबने..
..दिल में ना जाने क्या बात..
..फ़ेर दो जो हाथ तो आँखें नम हो जाती हैं..!

[3] ..शिकवा हैं शिकायत हैं..
..तुमसे की जो मुहब्बत..
..तो हुई एक बगावत हैं..

..अब नाम लेने का दिल नहीं होता..
..साँसों पे मेरे जो हुई तेरी सियासत हैं..!

[4] ..अब तल्ख़ भारी हैं नाम में मेरे क्या रक्खा हैं..
..जादूई ये राज़नीति हैं अब वक्त में क्या रक्खा हैं..!


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