Tuesday, 20 May 2014

Nitesh Verma Poetry

[1] ..अब कोई कहानी सुनानी नहीं..
..किसी को भी कोई बात बतानी नहीं..
..अपनों से क्या परायों से क्या..
..दिल को खुद दिल की बात बतानी नहीं..

[2] ..होते हैं कान दीवारों के भी..
..सीनें को कहीं अब यूं ही लगाना नहीं..
..मुहब्बत ये तुम्हारी खुलेआम बताती हैं..
..आँखों पे तेरे ठहर जाना नहीं..

[3] ..कोई इलाज़ कर जाओ तो बताओ..
..होंठों पे हैं कोई बसा अलग कर जाओ तो बताओ..
..यूं सरेआम ना बनाओं मज़ाक मेरा..
..मेरे हक में कुछ कर जाओ तो बताओ..

[4] ..तय कर लिया हैं मैंनें मंज़िल..
..अबके चाहें हो समन्दर पार किए जाऊँगां..
..किस्मत में होगी तो ज़िंदा..
..या फ़िर मुर्दा तैरता जाऊँगां..!

..नितेश वर्मा..


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