Thursday, 22 May 2014

..ज़िन्दगी में कई मुकाम ऐसे आए..

..ज़िन्दगी में कई मुकाम ऐसे आए..
..अपनों में बेवज़ह कई नाम ऐसे आए..
..बिगडता रहा मैं अपनी बातों से..
..ज़िन्दगी में परेशां कई रात ऐसे आए..

..ख़्वाबों में कई चेहरें ऐसे आए..
..कालें-धुँधलें पर गहरें से आएं..
..मन की विवेचनाओं पे अब अधिकार नहीं मेरा..
..ज़िन्दगी में कई मुकाम ऐसे आए..

..शहर के शहर बस्ती के बस्ती जल गए..
..इन घनी रौशनी में अब अँधेरें घर कर गए..
..मेरें सारें सियासत धरे के धरे रह गए..
..मौत से जब हम रू-ब-रू हो गए..

..सारें काम मिट्टी में मिल के रह गए..
..जब मरनें के बाद हम मिट्टी में रह गए..
..अब लफ़्ज़ों में भी मेरे दम नहीं..
..खुद में यें घुट के रह गए..

..कहानी-कविता अब कौन लिखें..
..जब दूसरों में ही हम रह गए..
..ज़िन्दगी में कई मुकाम ऐसे आए..
..अपनों में बेवज़ह कई नाम ऐसे आए..!


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