Thursday, 15 May 2014

..मनुष्य हो फ़िर भी भगवान हो बैठे हो तुम..

..क्या कहतें हो तुम मुझमें रहते हो तुम..
..मेरें साँसों से मेरे आहटों में बसते हो तुम..

..हर कहानी सुनाता हूँ..
..और तुम तक पहोच जाता हूँ..
..और ख़ामाखाह मुझे परेशां करतें हो तुम..

..कोई बुनता ना होगा धागा ऐसा..
..खून के लकीरों से मेरे बनतें हो तुम..

..अब कोई ज़िद ना करना तुम..
..कदमों में तेरे ये दुनियाँ रखतें हैं हम..

..मेरे दिल के बैठे विचारों को समझ बैठे हो तुम..
..अरे जाओ..!
..मनुष्य हो फ़िर भी भगवान हो बैठे हो तुम..

..क्या कहतें हो तुम मुझमें रहते हो तुम..
..मेरें साँसों से मेरे आहटों में बसते हो तुम..!


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